परिवार के भ्रष्टाचारियों का विरोध करना साधना ही है !

‘मेरा पति भ्रष्टाचारी है’, यह ज्ञात होने पर उसकी धर्मपत्नी और निकट के परिजन उसे पाप से बचाने के लिए उसे समझाना, उसके पापमय धन को स्वीकार नहीं करना इत्यादि प्रयास करें । इससे भी उसमें परिवर्तन ना हो, तो उसके विरोध में शिकायत करें । जिससे पाप में सम्मिलित होने का पाप उन्हें नहीं लगेगा ।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘अपने विभाग में हो रहा भ्रष्टाचार उजागर न करनेवाले पुलिसकर्मी क्या समाज में हो रहा भ्रष्टाचार उजागर कर पाएंगे ?’

काशी-मथुरा मुक्ति अभियान महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय विषय है ! – अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन

भारत को हिन्दू राष्ट्र कैसे घोषित कर सकते हैं, इस पर विचारमंथन एवं कृति रूपरेखा तैयार करने के उद्देश्य से हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा यहां आयोजित २ दिवसीय ‘हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’का प्रारंभ १८ नवंबर को हुआ ।

शासनकर्ताओं द्वारा साधना न सिखाकर सर्वधर्म समभाव सिखाने का दुष्परिणाम !

जनता को साधना सिखाकर उसे सात्त्विक बनाना, शासनकर्ताओं का कर्तव्य है । इसका पालन करने के स्थान पर नेताओं ने जनता को सर्वधर्म समभाव सिखाया । इस कारण सामान्य व्यक्ति अपना धर्म भूल गया और धर्म द्वारा सिखाए नैतिक मूल्य भी भूल गया ।

गाय को माता माननेवाले हिन्दुओं के लिए यह लज्जाजनक

‘कहां एक गाय की रक्षा के लिए प्राण त्यागनेवाले हिन्दुओं के पूर्वज, और कहां लाखों गायों को पशुवधगृह में भेजनेवाले आज के हिन्दू !’

कलियुग में समष्टि साधना करने का महत्त्व !

‘कलियुग के पूर्व के युगों में राजा जनता का रक्षण करते थे, इसलिए प्रजा व्यष्टि साधना करती थी । वर्तमान में विशेषतः स्वतंत्रता के उपरांत शासनकर्ता जनता का रक्षण नहीं करते । इस कारण सभी का समष्टि साधना करना आवश्यक है ।’

हिन्दुओ, ‘हिन्दू राष्ट्र मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे प्राप्त करके रहूंगा’, ऐसा निश्चय प्रत्येक हिन्दू को करना आवश्यक है !

‘हिन्दू राष्ट्र मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे पाकर रहूंगा’, ऐसा निश्चय कर, प्रत्येक हिन्दू को उसके लिए संघर्ष करने की वृत्ति के साथ संवैधानिक मार्ग से प्रयास करने चाहिए !

हिन्दुओं को साधना सिखाना अपरिहार्य !

‘संसार का सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म में जन्म प्राप्त करके भी धर्म के लिए कुछ भी न करनेवाले हिन्दू मरने योग्य हैं अथवा जीने योग्य नहीं’, ऐसा कुछ लोगों को लगता है; परंतु यह उचित नहीं ।’ उन्हें साधना सिखाना हिन्दुओं का कर्तव्य है ।’

ईश्वरप्राप्ति के संदर्भ में मनुष्य की लज्जाजनक उदासीनता !

‘धनप्राप्ति, विवाह, रोग-व्याधि इत्यादि अनेक कारणों के लिए अनेक लोग उपाय पूछते हैं; परंतु ईश्वर प्राप्ति के लिए उपाय पूछने का कोई विचार भी नहीं करता !’