सप्तर्षियों की जीवनाडीपट्टिका में सनातन के तीन गुरुओं के विषय में गौरवोद्गार !

सनातन संस्था के तीन गुरु, अर्थात सच्चिदानंद परब्रह्म परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ! सनातन के साधकों को मिली ईश्वरीय संपत्ति है ।

श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के निमित्त उनका ‘रथोत्सव’ मनाने के संदर्भ में जीवनाडीपट्टिका के माध्यम से सप्तर्षियों द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन !

गर्भगृह में रखी मूल मूर्ति के दर्शन करने भक्त मंदिर में जाते हैं । किसी कारण सभी भक्तों को मंदिर जाकर दर्शन करना संभव नहीं होता । इसीलिए देवताओं का रथोत्सव मनाने की प्रथा है । भगवान रथ में विराजमान होने से और रथ का गांव में मार्गक्रमण होने से भगवान के सबको दर्शन होते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के निमित्त श्रीविष्णु के रूप में हुआ उनका रथोत्सव : ईश्वर की अद्भुत लीला !

‘ईश्वर जब कोई कार्य निर्धारित करते हैं, तो प्रकृति, पंचमहाभूत, देवी-देवता एवं ऋषि-मुनि किस प्रकार उसे साकार रूप देते हैं ?’, यह दैवी नियोजन हम साधकों ने रथोत्सव के माध्यम से अनुभव किया ।

श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य का महत्त्व

‘भक्तों की रक्षा एवं दुर्जनों के विनाश’ के लिए भगवान अवतार धारण करते हैं । यह अवतार का मूल कार्य है; परंतु अवतारी लील का एक और अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है अवतार द्वारा पृथ्वी पर जन्म लेने के पश्चात वे युगों-युगों से भक्तों को भवसागर से मुक्त होने का मार्ग दिखाते हैं ।

सूक्ष्म से मिलनेवाले ज्ञान में अथवा नाडीपट्टिका में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का उल्लेख ‘संत’ न करते हुए ‘विष्णु का अंशावतार’ होने के विविध कारण !

अन्य संप्रदायों में उनके द्वारा बताई साधना करते समय उस साधक को कुछ न कुछ बंधन पालने पडते हैं; परंतु सनातन में साधना करते समय साधना के अतिरिक्त अन्य कोई भी बंधन नहीं बताए जाते ।

ग्रंथलेखन का अद्वितीय कार्य करनेवाले एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

आज भी संतों और अध्यात्म के अध्येताओं ने ग्रंथ के संबंध में कुछ सुधार सुझाए, तो परात्पर गुरु डॉक्टरजी उनके सुझावों का आनंद से स्वीकार कर उसके अनुसार ग्रंथों में सुधार करते हैं । 

स्वयं महर्षि जिनकी महिमा वर्णन करते हैं, ऐसे श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

इस विश्व में अनेक लोग स्वयं को ‘गुरु’ कहलाते हैं; परंतु उनमें ‘सच्चे गुरु’ ऐसे कोई नहीं हैं । सप्तर्षियों की दृष्टि से इस पृथ्वी पर ‘गुरु’ अर्थात केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ही हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रूप में साक्षात भगवान ही ‘गुरु’ के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं ।

विशिष्ट कष्ट के लिए विशिष्ट देवता का नामजप

सनातन के साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कारण आध्यात्मिक कष्ट होने लगे, तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमें समय-समय पर बताया कि ‘सनातन के साधक ईश्वरीय राज्य (हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना हेतु कार्यरत हैं; उसके कारण ही साधकों को अधिकांश कष्ट भुगतने पड रहे हैं ।

स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन कर भगवान को अपना बनाने के लिए कहना

‘मन, बुद्धि एवं चित्त शुद्ध हुए बिना हम भगवान से एकरूप नहीं हो सकते’, यह सिद्धांत है । इस प्रकार भगवान को अपना बनाना सिखाकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी बहुत पहले से साधकों से आपातकाल की तैयारी करवा ले रहे हैं । 

प्राणशक्ति प्रणाली उपचार पद्धति ढूंढना

रोगनिवारण के संदर्भ में बिंदुदाब, रिफ्लेक्सोलॉजी आदि उपचार-पद्धतियों में पुस्तकें अथवा जानकारों की सहायता आवश्यकता होती है । पिरैमिड, चुंबक चिकित्सा आदि उपचार-पद्धतियों में संबंधित साधन आवश्यक होते हैं ।