परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘गरीबी होना अथवा न होना, इसके पीछे ‘प्रारब्ध’ ऐसा कुछ कारण है’, यह न जाननेवाले साम्यवाद की डींगे हांकते हैं और जो गरीब हैं अथवा नहीं है, उनमें समानता लाने का प्रयत्न करते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी

बाढ, भूकंप, तृतीय विश्‍वयुद्ध, कोरोना आदि जैसे महामारी समान संकट का सामना करने के लिए आवश्यक तैयारी के विषय में इस लेखमाला के पहले लेख में चूल्हा, गोबर-गैस आदि के विषय में जानकारी देखी । दूसरे लेख में सब्जियां, फल आदि की खेती करने की जानकारी ली ।

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का उच्च ध्येय सामने रखकर युवा शक्ति को उचित दिशा दिखानेवाले द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘शिक्षा लेना, नौकरी करना, पैसा कमाना और मौज करना ही जीवन है’, यह विचार मेरे मन पर बचपन से ही अंकित होने के कारण स्वाभाविक रूप से मेरी तैयारी उसके अनुसार ही हुई ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक सात्त्विकता अनुभव की; पर आगे की पीढी ने वर्ष २०१८ तक अल्प मात्रा में अनुभव की और आगे वर्ष २०२३ तक अनुभव नहीं कर पाएंगे । उसके उपरांत की पीढी हिन्दू राष्ट्र में सात्त्विकता पुनः अनुभव करेगी !’

सप्तर्षियों का ५.७.२०२० को गुरुपूर्णिमा के (व्यासपूर्णिमा के) उपलक्ष्य में साधकों के लिए संदेश !

गुरुकृपा अर्थात गुरु की छत्रछाया ! यह छत्रछाया साधकों के लिए एक प्रकार का रक्षाकवच है । साधकों का गुरुदेवजी की छत्रछाया में रहना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । गुरुदेव ने अब अपने दोनों आध्यात्मिक उत्तराधिकारियों को अपनी शक्ति दी है ।

‘आपातकाल में मार्ग दिखाने हेतु ईश्‍वरस्वरूप तीन गुरु मिलना’, यह सनातन के साधकों का सौभाग्य !

आजकल संपूर्ण पृथ्वी पर ‘कोरोना’ विषाणुरूपी संकट मंडरा रहा है । यह संकटकाल ही है । इसके कारण विश्‍व के सभी राष्ट्र, समाज के लोग भय और चिंता से ग्रस्त हैं । कई करोड लोग केवल एक बार का भोजन कर पा रहे हैं, तो अनेक लोगों के घर भी नहीं रह गए हैं ।

‘तन, मन, धन एवं जीवन समर्पित कर निःस्वार्थभाव से राष्ट्र-आराधना कैसे करनी चाहिए ?’, इसके आदर्श एवं मूर्तिमंत उदाहरण हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘‘हमारे राष्ट्र का प्रातिनिधिक स्वरूप है परात्पर गुरु डॉक्टरजी का शरीर ! परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने बहुत पहले ही कहा है, ‘जिस समय हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होकर राष्ट्र को स्थिरता प्राप्त होगी, उस समय मेरे सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे और मैं स्वस्थ हो जाऊंगा’ ।’’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधक-कलाकारों के समक्ष रखा ध्येय !

परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘ईश्‍वरप्राप्ति हेतु कला’ के माध्यम से कला के सात्त्विक प्रस्तुतीकरण संबंधी मार्गदर्शन किया ।उसके साथ ही अखिल मानवजाति के लिए उपयुक्त ‘धरोहर’ के रूप में साधकों द्वारा किया जा रहा ध्वनिचित्रीकरण अच्छा होने के लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी ध्वनिचित्रीकरण और ध्वनिचित्र-संकलन करनेवाले साधकों को उपयुक्त सुधार बताते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का गुरुपूर्णिमा निमित्त संदेश

गुरुपूर्णिमा सनातन संस्कृति को प्राप्त गौरवशाली गुरुपरंपरा को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करने का दिन है । जिस प्रकार गुरु का कार्य समाज को आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन करना है, उसी प्रकार समाज को कालानुसार मार्गदर्शन करना भी गुरुपरंपरा का कार्य है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

बुढापा आने पर ही, बुढापा क्या होता है ? यह समझ मे आता है ।  उसका अनुभव होने पर बुढापा देनेवाला पुनर्जन्म नहीं चाहिए, ऐसे लगने लगता है; किन्तु तब तक साधना कर पुनर्जन्म टालने का समय चला गया होता है ।