ऋषि-मुनियों पर ‘ईश्वरीय कृपा’ !
‘वेद-उपनिषद लिखनेवाले ऋषि-मुनि पूर्व के सात्त्विक काल में हुए, यह अच्छा हुआ; क्योंकि आज के तामसिक काल में (कलियुग) में उन्हें कोई महत्त्व नहीं मिलता ।’
‘वेद-उपनिषद लिखनेवाले ऋषि-मुनि पूर्व के सात्त्विक काल में हुए, यह अच्छा हुआ; क्योंकि आज के तामसिक काल में (कलियुग) में उन्हें कोई महत्त्व नहीं मिलता ।’
‘नेताओं को स्थूल कार्य करने के कारण अनुभव किया जाता है, उदा. बाढ़ पीड़ितों की सहायता करना, साधन-सुविधा उपलब्ध कराना ; जबकि संत सूक्ष्म स्तरीय उपाय करने के कारण अनुभव होते हैं, उदा. अनेक लोगों की पारिवारिक समस्याओं सहित शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक समस्याएं दूर होती हैं ।’
‘वर्तमान काल में प्रत्येक भारतीय को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और असुरक्षितता जैसी अनेक समस्याओं का निरंतर सामना करना पड रहा है और ये दिन-प्रतिदिन बढती जा रही हैं । पूर्वकाल में युगों-युगों तक भारत की ऐसी स्थिति नहीं थी । पिछले कुछ शतकों से हिन्दुओं ने पश्चिमी जीवनशैली का अंधानुकरण किया, जिसके कारण ये समस्याएं उत्पन्न हुई हैं ।
‘वर्तमान काल में हिन्दुओं की दयनीय स्थिति का कारण उनका समष्टि प्रारब्ध है । इस प्रारब्ध पर विजय प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है , सभी हिन्दुओं का साधना करना !’
‘शोधकार्य का मन एवं बुद्धि के स्तर का होने के कारण, उसे काल का बंधन होता है । कुछ काल के उपरांत उस शोध में परिवर्तन होता है अथवा नष्ट हो जाता है । इसके विपरीत अध्यात्म के पंचमहाभूत, त्रिगुण जैसे सिद्धांतों में कोई परिवर्तन नहीं होता । उन्हें काल का बंधन नहीं है ।’
‘भारतीय संस्कृति में वृद्ध आश्रम कभी नहीं थे। यह पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण है । यह माता-पिता के प्रति कृतज्ञता के स्थान पर द्वेष दर्शाता है । आगे कुछ मृत माता-पिता पूर्वज बनकर परिजनों को कष्ट दें, तो इसमें आश्चर्य नहीं होगा !’
‘शरीर पहला वास्तु है। पहले उसकी शुद्धि का विचार करें, तदुपरांत बनाए हुए वास्तु (घर) का !’
‘सरकार के पास गुप्तचर विभाग होते हुए भी सरकार अपने ही भ्रष्ट, देशद्रोही सहस्रों कर्मचारियों को दंड क्यों नहीं दे पा रही है ?’
‘मेरा पति भ्रष्टाचारी है’, यह ज्ञात होने पर उसकी धर्मपत्नी और निकट के परिजन उसे पाप से बचाने के लिए उसे समझाना, उसके पापमय धन को स्वीकार नहीं करना इत्यादि प्रयास करें । इससे भी उसमें परिवर्तन ना हो, तो उसके विरोध में शिकायत करें । जिससे पाप में सम्मिलित होने का पाप उन्हें नहीं लगेगा ।’
‘विज्ञान व्यक्ति को सुखी करता है; परंतु आनंददायक अध्यात्म से दूर ले जाता है !’