‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा आयर्लैंड में ‘व्यसनाधीनता’ विषय पर शोधनिबंध प्रस्तुत !
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालया’के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक तथा ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’के शोध गुट के श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक |
फोंडा (गोवा) – महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध गुट के सदस्य तथा ६५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्री. शॉन क्लार्क ने बताया, ‘‘आध्यात्मिक शोध से दिखाई दिया है किसी व्यसन का ३० प्रतिशत कारण शारीरिक होता है, अर्थात मादक पदार्थाें पर निर्भर होता है, तथा ३० प्रतिशत मानसिक तथा ४० प्रतिशत आध्यात्मिक होता है । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार उचित आध्यात्मिक साधना करने से व्यसन पर अल्प कालावधि में मात कर सकते हैं । व्यसन पर पूर्ण रूप से मात करनेवाली आध्यात्मिक साधना एक अत्यंत शक्तिशाली साधन है ।’’ वे डब्लिन, आयर्लैंड में ‘कॉन्फरेंस सीरीज’ द्वारा आयोजित १० वें ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद ‘वार्षिक कांग्रेस ऑन मेंटल हेल्थ’ (एसीएमएच 2023) में बोल रहे थे । श्री. क्लार्क ने ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘आध्यात्मिक कारणों से व्यसन कैसे लगता है । तथा उसपर मात कैसे करें ?’ इस विषय पर १०२ वां शोधनिबंध परिषद में प्रस्तुत किया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालया के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक हैं तथा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध गुट के श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं |
१. श्री. क्लार्क ने बताया कि नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव अथवा पूर्वजों की अतृप्ति के कारण होनेवाले कष्ट व्यक्ति के जीवन पर परिणाम करते हैं, तथा वह उस व्यक्ति की नाकारात्मक ऊर्जा का आवरण बढाने का कारण बनता है । तथापि, एक बार किसी व्यक्ति ने आध्यात्मिक साधना आरंभ की, तो उसकी नकारात्मक ऊर्जा का आवरण घटने लगता है ।
२. श्री. क्लार्क ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के ‘यूनिवर्सल औरा स्कॅनर’ (यू.ए.एस.) उपकरण द्वारा प्रयोग कर निकाला निष्कर्ष इस परिषद में प्रस्तुत किया ।
३. इस प्रयोग में फ्रांस के एक संत के तीन चित्रों का प्रभामंडल नापा गया । पहला, साधना आरंभ करने के पूर्व जब उन्हें सिगरेट का व्यसन था । दूसरा, आध्यात्मिक साधना आरंभ करने के उपरांत तथा तीसरा, आध्यात्मिक प्रगति कर संत बनने के उपरांत का था ।
४. इनके निष्कर्ष पर ऐसा देखने में आया कि पहला चित्र जिसमें उन्हें सिगरेट का व्यसन था, उस चित्र में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल बडी मात्रा में था । दूसरे चित्र में, उनकी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल आधे से अल्प हुआ, जबकि संत होने के उपरांत के उनके तीसरे चित्र में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल अधिक मात्रा में आया ।
५. इस समय महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक साधना कर कुछ महीनों अथवा वर्षाें में व्यसन पर मात किए साधकों के परीक्षण के उदाहरण दिए गए ।
इन सभी प्रयोगों का निष्कर्ष बताते हुए श्री. क्लार्क ने बताया कि यदि वैद्यकीय समुदाय को समाज का मानसिक आरोग्य सुधारना है, तो उन्हें अपने शोध में आध्यात्मिक परिणाम सम्मिलित करना चाहिए एवं उनकी उपचार पद्धति में आध्यात्मिक साधना का उपयोग करना चाहिए; क्योंकि मानव के कल्याण के लिए अध्यात्म अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । |
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का तीव्र गति से मार्गक्रमण !महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा अभी तक १८ राष्ट्रीय तथा ८६ अंतरराष्ट्रीय, कुल मिलाकर १०४ वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । विश्वविद्यालय को अभी तक कुल १२ अंतरराष्ट्रीय परिषदों में ‘सर्वोत्कृष्ट शोधनिबंध पुरस्कार’ मिले हैं । |
बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।