स्टॉलिन का हिन्दीद्वेष !

संसदीय समिति के अध्यक्ष और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पूर्व ही राष्ट्रभाषा के विषय में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को प्रतिवेदन दिया था । संसदीय समिति ने आइ.आइ.टी,, आइ.आइ.एम., एम्स, तथा केंद्रीय विद्यापीठ और केंद्रीय विद्यालयों में अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी का प्रयोग करने की अनुशंसा की है । इस विषय में दक्षिण के राज्य, विशेष कर तमिलनाडू के मुख्यमंत्री स्टॉलिन ने आलोचना की है । उन्होंने सीधे ‘केंद्र भाषिक युद्ध आरंभ न करे !’, ऐसा वक्तव्य दिया है । केंद्र सरकार ने कुछ मास पूर्व नई शिक्षा नीति घोषित की थी । उसके अनुसार स्थानीय भाषा और मातृभाषा में शिक्षा को प्रधानता दी गई है । तमिलनाडू ने इस शिक्षा नीति के त्रिभाषा सूत्र का भी विरोध किया था । दक्षिण के राज्यों में तमिलनाडू का हिन्दीद्वेष नया नहीं है । वहां हिन्दी के विरुद्ध अनेक बार आंदोलन हुए हैं । वहां के शासकों ने वहां की जनता में वे स्वयं द्रविड और अन्य, विशेषकर उत्तर भारत के लोग, आर्य हैं; इस प्रकार से विभाजन किया है । ‘द्रविडाें की भाषा तमिल है’ वहां ऐसी ही धारणा फैलाई गई है । इसलिए कुछ दिन पूर्व मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने ‘देवताओं की भाषा तमिल है’, ऐसा वक्तव्य देकर सभी को चकित कर दिया था ।

हिन्दी का विरोध क्यों ?

मातृभाषा से प्रेम और उसका अभिमान होना ही चाहिए । कहा जाता है, ‘प्रत्येक १० कोस पर भाषा भिन्न होती है’ । उसमें भारत बहुभाषिक देश है । यहां प्रत्येक राज्य की भाषा और संस्कृति भिन्न हैं । दक्षिण के राज्यों की भाषा सीखना अथवा समझना क्लिष्ट है । परिणामस्वरूप अन्य भाषी राज्यों को उनसे बातें करने के लिए अंग्रेजी का आधार लेना ही पडता है । वहां के लोग भी शेष भारत से अंग्रेजी में व्यवहार करते हैं । इस लिए वहां की सामान्य जनता भी अंग्रेजी में संवाद करती है । यहां क्रोध उत्पन्न करनेवाला सूत्र यह है कि वे हिन्दी को बाहरी भाषा समझते हैं, तो अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी के प्रति उच्च कोटि का अपनापन रखते हैं । विश्व में प्रगत और विकसित देश के रूप में जाने जानेवाले जापान, जर्मनी, फ्रांस, रूस अपनी राष्ट्रभाषा में ही सारे व्यवहार करते हैं, अंग्रेजी में नहीं । इस्राइल ने तो उनकी पूर्णत: नष्ट हुई हिब्रू भाषा पुन: जीवित और प्रचलित की । उसी प्रकार से केंद्र सरकार यदि कोई उपाययोजना कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु प्रयत्नशील हो, तो विरोध क्यों किया जा रहा हैे ? दक्षिण के कुछ संगठनों ने तो वहां की जनता को हिन्दी सिखाने पर आंदोलन किए हैं । हिन्दी को बढने न देने में वहां के शासकों की अयोग्य मानसिकता एवं राजनीति आदि मुख्य कारण हैं ।

कांग्रेस उत्तरदायी !

दीर्घ काल तक सत्ता में रही कांग्रेस भारत में हिन्दी का विकास न होने देने में पूरी तरह से उत्तरदायी है । लोगों में भाषा संबंधी अस्मिता होनी चाहिए; किंतु संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी के स्थान पर कांग्रेस ने अंग्रेजी का पर्याय चुना । उससे भारतीयों की ऐसी ही मानसिकता हो गई कि हिन्दी कोई पिछडी भाषा है । न्यायालय से लेकर सरकारी कामकाज तक सर्वत्र अंग्रेजी का बोलबाला रहता है । इससे अंग्रेजी जाननेवाले और न जाननेवाले, भारत में ऐसे दो गुट हैं । अंग्रेजी न जाननेवालों को हीनभावना रहती है और योग्यता होते हुए भी अंग्रेजी न आने से चाकरी देने में टालमटोल का डर रहता है ! इसलिए माता-पिता अपेक्षा करते हैं कि छात्रों को छोटी आयु से ही अंग्रेजी बोलने में सक्षम होना चाहिए । इस लिए महाराष्ट्र जैसे हिन्दवी स्वराज्य की नींव रखनेवाले राज्य में ही मराठी विद्यालय सूने, तो अंग्रेजी कॉन्वेंट विद्यालयों को भरपूर प्रतिसाद, ऐसी स्थिति है । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेजी के प्रति ममता थी । राष्ट्रीय एकता के लिए अंग्रेजी के प्रति उनका आग्रह त्रासदायक सिद्ध हुआ । कांग्रेस द्वारा अंग्रेजी पर विशेष बल देने से आगे चलकर भाषा संबंधी अस्मिता रखने तथा बढानेवाले क्षेत्रीय दलों एवं उनके नेताओं का उदय हुआ । उनमें से कुछ लोगों ने मातृभाषा और अंग्रेजी को स्वीकार किया तथा हिन्दी की अनदेखी की । हम सभी आज उसी के फल भोग रहे हैं । तमिलनाडू पर तथाकथित सुधारवादी और अलगाववादी मानसिकता के पेरियार के विचारों का प्रभाव है । उनके द्वारा लागू की गई हिन्दीद्वेषी और अलगाववादी नीतियों के कारण ही तमिलनाडू में स्वतंत्र द्रविडिस्तान की मांग बढ रही है ।

केंद्रशासन के स्तुत्य प्रयास

हिन्दी की अवनति का इतिहास बडा है, तो भी केंद्र सरकार अपनी ओर से हिन्दी को ऊर्जितावस्था में लाने का प्रयास कर रही है । अंग्रेजी भाषा द्वारा संपूर्ण व्यवस्था को जकड लेने पर भी केंद्र सरकार की उचित योजनाओं के कारण अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को स्थान मिल रहा है । कुछ बडे आर्थिक व्यासपीठों का अपवाद छोड दें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी हिन्दी भाषा में ही बोलने को प्रधानता देते हैं । प्रधानमंत्री मोदीजी ने प्रधानमंत्री निवासस्थान के पास के ‘रेस कोर्स’ मार्ग का ‘लोक कल्याण मार्ग’, नामकरण किया है । सेना के ‘बीटिंग रिट्रीट’ के प्रात्यक्षिकों के समय अब ‘अबाईड विथ मी’ गाना हटाकर कवि प्रदीप के ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ गीत को समावेश किया गया । आध्यात्मिक शोध के अनुसार सबसे चैतन्यमय भाषा संस्कृत और तत्पश्चात मराठी तथा तदनंतर हिन्दी का क्रमांक आता है । इसलिए लिए केंद्र सरकार हिन्दी के विषय में बडी मात्रा में जनजागृति करे तथा जो राज्य हिन्दी के विरुद्ध हैं, वहां से जनमत लेकर वहां के स्थानीय लोगों को अपने व्यक्त रखने दे । हिन्दी की मांग करनेवालों को हिन्दी भाषा में शिक्षा उपलब्ध कराए । सब मिलाकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा की मान्यता मिलने के लिए सभी की मानसिकता में परिवर्तन होना आवश्यक है ।