इस ग्रहणकाल में २४ घंटे कैसे उपवास रखें ?

धर्म के अनुसार आचरण करने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है, अतः ८.११.२०२२ के चंद्र ग्रहण के समय धर्मशास्त्रानुसार बिना अन्न ग्रहण किए उपवास कीजिए !

१. चंद्रग्रहण का सूतककाल

‘८.११.२०२२ को चंद्रग्रहण है । इस दिन सूतककाल में अर्थात सूर्याेदय से लेकर सायंकाल ६.१९ बजेतक अन्नग्रहण करना निषिद्ध है । शास्त्र बताता है कि बालकों, वृद्ध व्यक्तियों, शारीरिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्तियों, बीमार व्यक्तियों तथा गर्भवती स्त्रियां सवेरे ११ बजे से ग्रहण के सूतककाल का पालन करें ।

२. आयुर्वेद के अनुसार इस ग्रहणकाल में भोजन कब करना चाहिए ?

७.११.२०२२ को रात ८ बजेतक भोजन करना चाहिए । उसके उपरांत सीधे ८.११.२०२२ को सायंकाल में ग्रहण समाप्त होने के उपरांत स्नान कर भोजन बनाकर भोजन करना पडेगा । उसके कारण ग्रहण के दिन रात ८ बजे से ८.३० तक भोजन होगा । इससे लगभग २४ घंटों का उपवास होगा ।
जो लोग सवेरे ११ बजे से सूततकाल का पालन करनेवाले हैं, वे ग्रहण के दिन सवेरे चाय अथवा अल्पाहार न लेकर ११ बजे से पूर्व सीधे भोजन करें ।

३. २४ घंटों का उपवास करने से होनेवाले लाभ

वैद्य मेघराज माधव पराडकर

‘मनुष्य के लिए अन्न की अत्यंत आवश्यता होती है’, यह सभी को ज्ञात है । तो ‘ऋषि-मुनियों ने ग्रहण के संबंध में इतने कठोर नियम क्यों बनाए हैं ?, ऐसे नियम डालते समय ‘ग्रहणकाल में मनुष्य को भूख लगी, तो उसमें उसे कुछ खाने की छूट दी जानी चाहिए’; ऐसा धर्मशास्त्रकारों को क्यों नहीं लगा ? वे मनुष्यजाति को भूखा रखने इतने ‘कठोर’ क्यों बने ?’, ऐसे प्रश्न मन में उठ सकते हैं; परंतु आगे दिए गए उपवास के लाभ समझ लेकर एक बार स्वयं उपवास कर उसका अनुभव करने पर हमें हमारे ऋषि-मुनियों के प्रति बार-बार कृतज्ञता व्यक्त करने की इच्छा होगी । २४ घंटे उपवास करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं ।

अ. शरीर के द्वारा रक्त में स्थित अतिरित चीनी का उपयोग किया जाता है, जिससे मधुमेह होने की संभावना न्यून होती है ।

आ. यकृत, साथ ही शरीर में अन्यत्र संग्रहित मेद (चर्बी) न्यून होना आरंभ होता है ।

इ. हृदय की नसें खुली होना आरंभ होता है । नियमितरूप से शास्त्रीय पद्धति से उपवास करने से हृदयविकार होने की संभावना न्यून होती है ।

ई. पेट, साथ ही आंत्रो को संपूर्ण विश्राम मिलता है । उसके कारण कुल मिलाकर पाचनसंत्र का स्वास्थ्य सुधारने में सहायता होती है ।

उ. अन्नमार्ग में खरोंच आए हों, तो उनके भर आने में सहायता होती है ।

ऊ. रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है ।

ए. शरीर में स्थित हानिकारक जीवाणु, साथ ही जीर्ण कोशिकाएं मरनी आरंभ होती है । उसके कारण जीवाणु संक्रमण (इन्फेक्शन) हो, तो वह ठीक होना आरंभ होता है ।

ऐ. कैंसर की कोशिकाएं मरने लगती हैं । (क्या ‘दीर्घकालीन उपवास’ कैंसर का उपचार हो सकता है ?’, इस पर विदेशों में शोधकार्य चल रहा है ।)

ओ. बडे आंत्र में असंख्य जीवाणु होते हैं । उनमें से अधिकांश जीवाणु शरीर के लिए उपयुक्त होते हैं । उपवास के कारण हानिकारक जीवाणु मरते हैं; परंतु उपयुक्त जीवाणुओं की संख्या बढती है । उसके कारण स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है ।

औ. शरीर में स्थित संप्रेरकों में (हॉर्माेंस में) संतुलन बना रहना आरंभ होता है ।

अं. मस्तिष्क की कोशिकाओं में नया जाल तैयार होना आरंभ होता है, जिससे मस्तिष्का के कार्य में सुधार आता है । इससे नींद, स्मृति आदि के कार्य में सुधार आता है ।

क. शरीर में नई कोशिकाएं तैयार होती हैं । नियमित शास्त्रीय पद्धति से उपवास करने से वृद्धावस्था विलंब से आती है ।

४. क्या २४ घंटे उपवास करना मुझे संभव होगा ?

विश्व की मनुष्यजाति में यह अवधारणा है कि ‘बिना खाए मैं जी ही नहीं सकता’ । एक बार यह अवधारणा दूर हुई, तो किसी को भी २४ घंटे तो क्या; परंतु उससे अधिक घंटोंतक उपवास करना बडी सहजता से संभव है । यह अवधारणा दूर होने के लिए निम्नलिखित तथ्यों को समझ लें –

अ. ५० किलोग्राम वजनवाला कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार का अन्न ग्रहण किए बिना केवल पानी पीकर ५० दिनोंतक सहजता से जीवित रह सकता है । हमारे शरीर में संचित अन्न का संग्रह होता है । हमें तो ग्रहणकाल में केवल १ दिन उपवास करना है ।

आ. निरंतर खाने के अभ्यस्त होने से शरीर में स्थित संचित अन्न के संग्रह का कभी भी उपयोग में नहीं लाया जाता, जिसके कारण ही मोटापा, मधुमेह, हृदयविकार जैसे रोग बढ रहे हैं । इस संग्रह का उपयोग हो; इसके लिए उपवास करना सहायक सिद्ध होगा ।

इ. एक बार खाने का समय हुआ, तो आदत के अनुसार भूख तो लगेगी ही; परंतु उस समय में कुछ नहीं खाया, तो कुछ समय उपरांत यह भूख चली जाती है । ‘विशिष्ट समय होने पर भूख लगना’ शरीर में स्थित संप्रेरकों के (हॉर्माेंस के) कार्य के कारण होता है ।

ई. मन का दृढनिश्चय हो, तो कोई भी अर्थात पतला व्यक्ति भी सहजता से २४ घंटे उपवास रख सकता है ।

उ. धर्मशास्त्र में एकादशी, चतुर्थी, ग्रहणकाल इत्यादि समय में उपवास बताए गए हैं । सामान्य मनुष्य उन्हें कर सकता है; इसीलिए शास्त्रकारों ने वह बताया है । वैसा करना यदि संभव न होता, तो शास्त्रकार वैसा बताते ही नहीं ।

ऊ. धर्मशास्त्र में चांद्रायण व्रत, कृच्छ्र व्रत जैसे प्रायश्चित बताए गए हैं । इनमें अनेक दिनोंतक दिन में एक ही बार अत्यंत सीमित मात्रा में भोजन करने के लिए कहा गया है । हमें तो केवल २४ घंटे उपवास रखना है ।

ए. समर्थ रामदासस्वामी प्रतिदिन १२०० सूर्यनमस्कार करते थे तथा हाथ की अंजुली में समाएगी, उतनी ही भिक्षा मांगकर उस भोजन को गोदावरी नदी के जल में धोकर ग्रहण करते थे । इससे केवल अन्न से ही शक्ति मिलती है, यह अवधारणा है ।

ऐ. आज के काल में भी दिन में एक बार भोजन करनेवाले लोग हैं । ईश योग संस्था के सद्गुरु जग्गी वासुदेव दिन में एक ही बार भोजन करते हैं, इसका अर्थ उनका प्रतिदिन लगभग २४ घंटों का उपवास होता है । इतना होते हुए भी वे संपूर्ण क्षमता के साथ कार्यरत रहते हैं, साथ ही वे देश-विदेशों में दोपहिया वाहन से बहुत लंबी यात्राएं भी करते हैं ।

ओ. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी विगत ४४ वर्षाें से नवरात्रि के समय में ९ दिन केवल सीमित फळाहार एवं पानी पीकर उपवास रखते हैं तथा इस काल में भी वे संपूर्ण क्षमता के साथ कार्यरत रहते हैं ।

औ. आय्.ए.एस्.एस्. (International Association For Scientific Spirtualism) नाम के मेरठ, उत्तरप्रदेश स्थित संस्था में ७-७ दिनतक बिना अन्न उपवास रखने के शिविर लिए जाते हैं । इन शिविरों में लोग ७ दिनतक बिना खाए केवल पानी पीकर अनेक रोगों से मुक्त हो जाते हैं ।

अं. विदेशो में ४०-४० दिनतक केवल पानी पीकर उपवास रखनेवाले अनेक लोग हैं । वहां उपवास पर बडे स्तर पर शोधकार्य किया जा रहा है । हमें तो केवल १ दिन उपवास रखना है ।

क. भावी भीषण आपातकाल में अन्न सहजता से उपलब्ध नहीं होगा । उसके लिए तैयारी के रूप में भी हम १ दिन का उपवास रखकर देख सकते हैं ।

५. ग्रहणकाल में २४ घंटे कैसे उपवास रखें ?

अ. उपवास रखने का दृढनिश्चय कर उसे पूर्ण करवा लेने के लिए अपने इष्टदेवता से प्रार्थना करें ।

आ. ग्रहण के एक दिन पूर्व भोजन करें । उसके उपरांत कुछ भी न खाएं ।

इ. इस काल में पानी पिया जा सकता है; परंतु एक ही बार में अधिक पानी न पीकर थोडा-थोडा पीएं । एक ही बार अधिक मात्रा में पानी पीने से यह पानी मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है, जिसका शरीर को किसी प्रकार का लाभ नहीं होता । जैसे गमले में लगाए पेड को अधिक पानी देने से वह पानी गमले के नीचे स्थित छेद से निकल जाता है, वैसा यह है । पेड को ठीक से पानी मिले; इसके लिए बूंदसिंचाई की जाती है । इस पानी का पेड को संपूर्णरूप से उपयोग होता है । उसी प्रकार शरीर को भी पर्याप्त पानी मिले; इसके लिए एकदम से अधिक पानी न पीकर एक-एक घुट्टी पानी पीएं ।

ई. उपवास रखते समय पर्याप्त पानी पीने से तनिक भी थकान नहीं होती, पित्त नहीं होता, साथ ही मस्तकशूल भी नहीं होता ।

उ. ग्रहण के पर्वकाल में अर्थात सूर्यास्त से लेकर सायंकाल ६.१९ बजेतक ग्रहण समाप्त होनेतक पानी भी न पीएं ।

ऊ. इस काल में हम सामान्य सभी कार्य, परिश्रम के काम, साथ ही व्यायाम भी कर सकते हैं ।

ए. ग्रहणकाल में दोपहर न सोएं । नींद अनियंत्रित हुई, तो बैठे-बैठे झपकी लें ।

ऐ. ग्रहण समाप्त होने के उपरांत भूख लगी है; इसलिए तुरंत दीपावली के मीठे पदार्थ अथवा अन्य कुछ न खाएं ।

ओ. ग्रहण समाप्त होने पर स्नान कर १-२ चम्मच घी डालकर दाल-चावल अथवा मूंग के दाल जैसा हल्का आहार लें ।

औ. दूसरे दिन से सामान्य की भांति आहार ग्रहण करें ।

६. मधुमेह के रोगी उपवास रखने से पूर्व अपने वैद्य से परामर्श लें

किसी को मधुमेह के लिए एलोपैथी की गोलियां अथवा इंसुलिन चालू हो, तो उपवास रखने से पूर्व वैद्य से परामर्श लेकर उस िदिन लेनेयोग्य गोलियों की मात्रा सुनिश्चित करें । सामान्यरूप से बिना अन्न के उपवास के दिन मधुमेह की कोई भी औषधि नहीं लेनी चाहिएं; परंतु तब भी अपने वैद्य से परामर्श लेकर ही वहह सुनिश्चित करें ।

७. उपवास रखते समय कष्ट हुआ, तो क्या करना चाहिए ?

उक्त दिए अनुसार पर्याप्त मात्रा में पानी पीकर उपवास रखने से कष्ट नहीं होता; परंतु तब भी कष्ट हुआ, तो आगे दिए अनुसार उपचार करें –

७ अ. मस्तकशूल

सीधे सोकर दोनों नासिकाओं में २-२ बूंदें घी अथवा नारियल का तेल डालें । चम्मचभर नारियल तेल में चुकटकीभर कपूर मिलाकर उसे सिर को लगाएं ।

७ आ. पित्त बढने से मिचली अथवा उल्टी होना

उल्टी सहजता से होने के लिए गिलासभर पानी पीकर जीभ पर उंगलियां रगडें । बढा हुआ पित्त गिर जाने से उल्टी रुकती है । पित्त गिरने से बहुत स्वस्थ लगता है; परंतु उल्टी न हो रही हो, तो उसे जानबूझकर बाहर निकालने का प्रयास न करें । उल्टी नहीं हुई तो पिया हुआ पानी मूत्र के द्वारा निकल जाएगा तथा उसके साथ पित्त भी निकल जाएगा ।

७ इ. मधुमेह के रोगियों के रक्त में स्थित चीनी न्यून होना

कांपने जैसा होना, आंखों के सामने अंधेरा छा जाना, पसीना छूटना, छाती में धडकन बढने जैसे रक्त में स्थित चीनी न्यून होने से लक्षण दिखने लगे, तो चीनी अथवा गूड खाकर पानी पीएं । (मधुमेह न हो, तो केवल पानी पीएं ।)

८. उपवास रखने के लिए मन की तैयारी करें !

उपवास रखने की मन की तैयारी होने के लिए इस लेख को बार-बार पढें । तब भी मन की तैयारी नहीं हुई, तो उपवास न रखें । प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति अलग-अलग होने से कोई किसी को उपवास रखने का आग्रह न करें; परंतु स्वयं का निश्चय हो, तो अवश्य ही २४ घंटे उपवास कर अनुभव करें ।

‘धर्माे रक्षति रक्षितः ।’ अर्थात ‘जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म अर्थात ईश्वर करते हैं ।’ ग्रहणकाल में धर्मशास्त्र में बताए अनुसार आचरण करने के लिए सभी को शक्ति मिले, यह ईश्वर के चरणों में प्रार्थना है प्रार्थना !’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.११.२०२२)