भारतीय संस्कृति के गहन अध्ययनकर्ता और वरिष्ठ शोधकर्ता ठाणे के पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी द्वारा लिखित ग्रंथों की शृंखला का शुभारंभ !

पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी

     पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी (आयु ८७ वर्ष) ‘आइआइटी, मुंबई’ के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी प्राप्त प्राध्यापक के रूप में कार्यरत थे । इस काल में उन्होंने विविध शैक्षिक एवं प्रशासकीय उतरदायित्व निभाए, साथ ही विदेश में भी अध्यापन कार्य किया । सेवानिवृत्ति के उपरांत ‘भारतीय संस्कृति’ के विषय में जानने की विशेष रुचि उनमें निर्माण हुई । तदुपरांत भारतीय संस्कृति ही उनके अध्ययन और अध्यापन का क्षेत्र बन गया । उनके विशेष प्रयासों के कारण ‘भारतीय संस्कृति’ यह विषय ‘आइआइटी, मुंबई’ में पढाया जाने लगा, साथ ही इस विषय पर स्वयं अध्ययन कर उन्होंने विद्यार्थियों में भारतीय संस्कृति के विषय में रुचि निर्माण की । पू. ओझाजी जितनी कालावधि तक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत थे, उस कालावधि में ‘भारतीय संस्कृति’ विषय सीखनेवालों की संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही थी ।
भारतीय संस्कृति के गहन अध्ययनकर्ता, वरिष्ठ शोधकर्ता तथा ज्ञानमार्गानुसार साधना कर भारतीय संस्कृति के उत्थान हेतु समर्पितभाव से अलौकिक कार्य करनेवाले ठाणे के पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी द्वारा लिखित ग्रंथों का चयनित विषय दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रत्येक रविवार को प्रकाशित किया जाएगा । पू. डॉ. ओझाजी ने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, संस्कृत भाषा इत्यादि विषयों पर ११ ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । उनका ६६० पृष्ठों का ग्रंथ ‘भारतीय संस्कृति महान और विलक्षण’ सनातन वैदिक संस्कृति का सार ग्रंथ है । यह ग्रंथ हिन्दी भाषा में है । उसे मराठी में अनुवादित कर प्रकाशित किया जा रहा है । ‘पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी द्वारा लिखित किस ग्रंथ में किस विषय का समावेश है ?’, इसकी संक्षिप्त जानकारी हम पाठकों के लिए दे रहे हैं ।

१. ‘सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?’ इस ग्रंथ में ‘आधुनिक शिक्षा के कारण मनुष्य के भौतिक सुखों की ओर आकृष्ट होने से क्या-क्या हानि हुई ? ‘शिक्षा’ का अर्थ, अंग्रेजी भाषा की आधुनिक शिक्षा तथा उसके दोष, शिक्षा में विविध प्रकार के प्रमाणों का आधार होना क्यों आवश्यक है ? और उससे होनेवाले लाभ, शिक्षा में धर्म क्यों आवश्यक है ? आधुनिक शिक्षा के कारण युवकों की हुई वैचारिक हानि’, ऐसे विविध विषयों का विवेचन किया गया है ।

२. ‘भारतीय संस्कृति समझना अनिवार्य क्यों?’ ग्रंथ में ‘क्या है भारतीय संस्कृति ? क्या है भारतीय संस्कृति का केंद्रबिंदु ? यह जानने से कौन से लाभ होते हैं ? भारतीय संस्कृति ने संस्कृत भाषा को अधिक महत्त्व क्यों दिया है? भारतीय संस्कृति धर्म का स्वरूप किस प्रकार समझाती है ? इस संस्कृति का पालन करने से जीवन का लक्ष्य उचित ढंग से कैसे चुन सकते हैं ? भारतीय संस्कृति कर्म का विज्ञान किस प्रकार समझाती है ? अंतःकरण शुद्धि के कौन से उपाय संस्कृति में है ?’, इसके साथ ही अनेक विषयों का विवेचन किया गया है साथ ही ‘भौतिकतावादी समाज की स्थिति और भारतीय संस्कृति’ के मध्य भेद स्पष्ट कर दिखाया गया है ।

३. ‘भारतीय संस्कृति : केंद्रबिंदु एवं तत्त्व क्या है ?’ इस ग्रंथ में ‘पूजा-पाठ करना, ध्यान, योग, प्राणायाम, मंत्र-जप, तंत्र, आध्यात्मिक प्रवचन, ये सब वास्तव में किसलिए हैं? इन सभी का केंद्रबिदु क्या है ? भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ होने के मूल कारण, भारतीय संस्कृति किस प्रकार जीवन को स्थिरता देती है ? केवल भौतिक ज्ञान प्राप्त करने से होनेवाली हानियां’, इसके साथ ही अन्य विषयों पर परामर्श दिया गया है ।

४. ‘संस्कृत-हिन्दी महत्त्वपूर्ण क्यों, प्रचार कैसे हो ?’ इस ग्रंथ में ‘संस्कृत भाषा के विशेष गुण, भाषा का शब्दभंडार; हिन्दी, साथ ही अन्य भाषा के प्रचार में वृद्धि करने के विविध उपाय, शुद्ध उच्चारणों का महत्त्व’, साथ ही अन्य विषयों का विवेचन किया गया है ।
पू. डॉ. ओझाजी के यल ग्रंथ अर्थात धर्म, संस्कृति और अध्यात्म के अध्ययनकर्ताओं के लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अनमोल भेंट है और हिन्दू समाज के लिए एक अनमोल धरोहर है । इन ग्रंथों का ज्ञान अर्थात हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों का सार; इसलिए इन ग्रंथों को संदर्भ ग्रंथ कहना उचित होगा । वैज्ञानिक प्रमाण के साथ प्रसृत यह ज्ञान ‘सनातन प्रभात’ में आंशिक रूप से प्रकाशित होता हो, तब भी पू. डॉ. ओझाजी के ग्रंथों द्वारा पाठक इस ज्ञान का विस्तृत अध्ययन कर सकते हैं । इस अवसर का पाठक अवश्य लाभ लें ।

पाठकों से विनती !

केवल हिन्दू समाज ही नहीं; संपूर्ण विश्व को अध्यात्म की सीख देने के लिए पू. डॉ. ओझाजी द्वारा लिखित ग्रंथ विविध भाषाओं में उपलब्ध होना आवश्यक है । वर्तमान में पू. डॉ. ओझाजी के ये ग्रंथ हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं में उपलब्ध है । अन्य भाषाओं में इन ग्रंथो का अनुवाद करने के इच्छुक पाठक कृपया संपर्क करें ।

पता : श्रीमती भाग्यश्री सावंत, द्वारा ‘सनातन आश्रम’, २४/बी, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा पिन – ४०३४०१

चल-दूरभाष क्र. : 7058885610

संगणकीय पता : [email protected]

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