विश्वयुद्ध, भूकंप आदि आपदाओं का प्रत्यक्ष सामना कैसे करें ?

पिछले अनेक वर्षाें से सनातन संस्था बता रही है कि आपातकाल अब देहरी (देहलीज) तक पहुंच गया है और वह कभी भी भीतर प्रवेश कर सकता है । पिछले पूरे वर्ष से चल रहा कोरोना महामारी का संकट आपातकाल की ही एक छोटी-सी झलक है । प्रत्यक्ष आपातकाल इससे अनेक गुना भयानक और क्रूर होगा, उसके विविध रूप होंगे । इसमें मानव-निर्मित तथा प्राकृतिक आपदाएं होंगी । इनमें से कुछ प्रसंगों की जानकारी हम इस लेखमाला में देखेंगे । इस आपातकाल में अपनी तथा परिवार की रक्षा करने हेतु हम क्या कर सकते हैं, इसकी थोडी-बहुत जानकारी इस लेखमाला में देने का प्रयास किया है । पाठकों को इसका लाभ हो, यही इस लेखमाला का उद्देश्य है । आगे तीसरे विश्वयुद्ध के समय परमाणु बम के आक्रमणों को नकारा नहीं जा सकता । पिछले लेख में हमने परमाणु बम के विस्फोट का स्वरूप, मानव जीवन पर इसके होनेवाले दुष्परिणाम के संदर्भ में जानकारी प्राप्त की थी ।
भाग ३

२. जैविक अस्त्रों द्वारा होनेवाले आक्रमण

२ अ. ‘जैविक अस्त्र’ क्या है ? : मनुष्य, पशु तथा फसल पर बीमारी फैलाने हेतु उपयोग में लाए जानेवाले सूक्ष्म जीवाणुओं अथवा विषाणुओं को ‘जैविक अस्त्र’ कहते हैं । पशुओं का संक्रामक रोग (एंथ्रेक्स), ग्रंथियों का रोग (ग्लैंडर्स), एक दिन छोडकर आनेवाला ज्वर (ब्रुसेलोसिस), हैजा (कॉलरा), ‘प्लेग’, ‘मेलियोआइडोसिस’ इत्यादि रोगों के जीवाणुओं एवं विषाणुओं का उपयोग ‘जैविक अस्त्र’ के रूप में किया जाता है ।

२ आ. जैविक अस्त्रों द्वारा होनेवाले आक्रमणों का स्वरूप

१. जैविक अस्त्रों द्वारा आक्रमण करने हेतु प्राणी, पक्षी, मनुष्य, वायु इत्यादि का उपयोग करना : जैविक अस्त्रों द्वारा किए जानेवाले आक्रमण के समय हैजा समान उपरोल्लेखित रोगों के विषाणु शत्रु राष्ट्र में प्राणी, पक्षी, मनुष्य, वायु इत्यादि के माध्यम से छोडे जाते हैं । संबंधित रोग की बाधा होने से शत्रु राष्ट्र की जीवित, आर्थिक इत्यादि स्वरूप की हानि होती है ।

२. जैविक अस्त्रों द्वारा आक्रमण हुआ, यह ध्यान में आना कठिन : ये आक्रमण सामान्य बम, क्षेपणास्त्र अथवा हवाई आक्रमणों के समान नहीं होते । इसलिए सामान्य लोगों को ‘जैविक अस्त्रों द्वारा आक्रमण हुआ है’, यह ध्यान में आना कठिन है । देश में किसी स्थान पर अथवा सर्वत्र एकाएक किसी रोग का भारी मात्रा में प्रसार हुआ, तो उसके पीछे शत्रु राष्ट्र का आक्रमण एक कारण हो सकता है ।

३. जैविक अस्त्रों द्वारा आक्रमण करनेवाला शत्रु राष्ट्र पहचानना भी कठिन होता है : ‘जैविक अस्त्रों द्वारा हुआ आक्रमण शत्रु राष्ट्र की ओर से किया गया है’, यह भी उजागर होना कठिन होता है । वर्तमान में ‘कोरोना’ विषाणु चीन ने जैविक अस्त्र के रूप में निर्माण किया तथा शत्रु राष्ट्रों में फैलाया’, ऐसा आरोप लगाया जाता है ।

४. शासन की घोषणा के बिना जैविक अस्त्रों द्वारा हुए आक्रमण के विषय में कौनसी उपचार-पद्धति अपनाएं ?, यह समझना संभव न होना : जैविक अस्त्रों द्वारा हुआ आक्रमण अधिकांशतः संक्रमणजन्य होता है । ‘जैविक आक्रमण हुआ है तथा वह किस प्रकार का है ?’, यह शासन द्वारा अधिकृत रूप से बताए बिना ‘उस विषय में क्या ध्यान रखना चाहिए ?’, यह समझ में आना संभव नहीं है ।

५. जैविक अस्त्रों के बिना फैले संक्रमणजन्य रोगों के संक्रमण से भी होनेवाली भीषण हानि : किसी भी शत्रु ने जैविक अस्त्रों द्वारा आक्रमण नहीं किया तथा केवल संसर्गजन्य रोगों की बाधा हुई, तब भी जीवित एवं वित्त की भारी मात्रा में हानि होती है । आज तक विश्व में सर्वाधिक अर्थात करोडो लोगों के प्राण ‘प्लेग’ नामक संसर्गजन्य रोग ने लिए हैं । हैजा (कॉलरा), मलेरिया, शीतज्वर (इन्फ्लुएंजा), मोतीझिरा, घटसर्प, कुकुरखांसी, क्षयरोग, कुष्ठरोग, ये संसर्गजन्य रोगों के कुछ उदाहरण हैं । ‘कोविड १९’ अर्थात ‘कोरोना’ वर्तमान का उदाहरण है । १२ फरवरी २०२१ तक पूरे विश्व के १० करोड ८२ लाख ९८ सहस्र से अधिक लोगों को ‘कोरोना’ की बाधा होकर उनमें से २३ लाख ७८ सहस्र ८७३ लोगों की मृत्यु हुई है ।

६. जैविक अस्त्रों द्वारा अथवा अन्य प्रकार से फैलनेवाले संसर्गजन्य रोग से रक्षा होने हेतु कुछ प्रतिबंधात्मक उपाय : जैविक अस्त्रों द्वारा किया गया आक्रमण कौनसे विषाणु के कारण हुआ है, यह समझ में आने पर उस पर टीका तैयार करना इत्यादि प्रतिबंधात्मक उपचार-पद्धतियां अपनाई जाती हैं । अधिकांश समय जैविक अस्त्रों द्वारा आक्रमण हुआ है, यह समझ में आने तक भारी मात्रा में जीवित हानि हो जाती है । अतः किसी रोग का प्रमाण बढ रहा है, यह ध्यान में आते ही उस पर नियंत्रण प्राप्त करने हेतु संक्रामक रोगों से रक्षा होने हेतु आवश्यक उपचार-पद्धति ही अधिक उपयोग में लाई जाती है । ‘कोरोना’ विषाणु के कारण निर्माण हुई महामारी के संदर्भ में अनेक उपचार-पद्धतियों का आयोजन किया गया था । आक्रमण जैविक अस्त्रों द्वारा हो अथवा संक्रामक रोग हो, उनसे रक्षा होने हेतु ये समाधान मार्गदर्शक सिद्ध हाेंगे ।

२ इ. ‘कोरोना’ समान विषाणु की बाधा स्वयं को न होने हेतु ध्यान में रखने योग्य सूत्र

१. ‘कोरोना’ की बाधा होने के लक्षण : ‘कोरोना’ विषाणु की बाधा होने पर वह फेफडे में संक्रमित होता है । इसलिए आगे दिए लक्षण दिखाई देते हैं ।
अ. ज्वर आना

आ. सूखी खांसी आना

इ. गले में चुभन (खराश) होना

ई. श्वास ग्रहण करने के संदर्भ में समस्या निर्माण होना तथा दम लगना एवं थकान होना

उ. सिरदर्द, स्नायुवेदना इत्यादि लक्षण भी दिखाई देना

२ इ १. ‘कोरोना’ के लक्षण दिखाई देने से पूर्व सामान्य रूप से ध्यान में रखनेयोग्य सूत्र

अ. घर पर रहते समय ध्यान मेंरखनेयोग्य सूत्र

१. बढे हुए नख नियमित रूप से काटने चाहिए ।

२. घाव हुआ है तो उसे ढंककर रखें ।

३. अपना घर एवं परिसर स्वच्छ रखें ।

४. हाथ स्वच्छ धोएं ।

४ अ. हाथ साबुन से स्वच्छ धोए बिना आंखें, नाक तथा मुख को स्पर्श न करें ।

४ आ. अन्न सिद्ध करनेसे पूर्व, भोजन बनाते समय तथा भोजन तैयार करने के उपरांत खाने से पूर्व, शौचालय में जाकर आने पर तथा हाथों पर धूल जमने पर नल के बहते पानी के नीचे साबुन से हाथ धोएं अथवा ‘अल्कोहोल’वाला हाथ धोने का द्रवरूप साबुन (‘हैंड सैनिटाइजर’) का उपयोग करें ।

४ इ. जानवर, जानवराें का खाद्य अथवा विष्ठा के संपर्क में आने पर, हस्तांदोलन करने पर, खांसी एवं छींक आने पर तथा रुग्णसेवा करने पर हाथ स्वच्छ धोएं ।

५. खांसते अथवा छिंकते समय मुख पर ‘टिशू पेपर’, रुमाल अथवा शर्ट की बांही रखें । प्रयुक्त ‘टिशू पेपर’ तुरंत कूडादान में डालकर वह बंद करें ।

६. घर में कोई भी व्यक्ति बीमार होने पर तुरंत स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में उपचार कर लें । सर्दी होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें ।

७. दिनभर सदैव थोडे-थोडे समय से गुनगुना पानी पिएं । ‘मुंह न सूखे’, इसका ध्यान रखें ।

८. ठंड पेय तथा पदार्थ उदा. शरबत, आईसक्रीम, लस्सी इत्यादि पीना टालें ।

९. ‘स्वेटर’, ‘मफलर’ इत्यादि ऊनी वस्त्र प्रतिदिन थोडे समय के लिए धूप में रखें । उसी प्रकार प्रतिदिन कुछ समय धूप में
खडे रहें । (क्रमशः)

पाठकों से निवेदन : इस लेख का विस्तृत भाग ‘सनातन प्रभात’ के जालस्थल पर bit.ly/mahayudha लिंक पर विस्तृत रूप से पढ सकते
हैं । कृपया ध्यान दें कि इसके कुछ अक्षर ‘कैपिटल’ हैं ।