१४ मई २०२१ के दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में ‘निर्विचार’ नामजप संबंधी चौखट प्रकाशित हुई थी । गुरुकृपायोग में बताया गया है कि ‘साधना के आरंभ में कुलदेवता एवं दत्तात्रेय देवता का नामजप करना चाहिए ।’ इसके साथ ही गुरुकृपायोग का एक तत्त्व है ‘स्तरानुसार साधना’ । ऐसा होते हुए भी ‘निर्विचार’ यह ‘गुरुकृपायोग में सबसे अंतिम नामजप’ प्रारंभ के साधक से लेकर संत तक कोई भी कर सकता है’ ऐसे क्यों दिया है ?’, ऐसा प्रश्न कुछ लोगों के मन में उठ सकता है । इसका उत्तर आगे दिए अनुसार है ।
अध्यात्म में प्रगति करने हेतु साधना के विविध चरण पूर्ण करने होते हैं । उदा. स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भावजागृति, त्याग एवं प्रीति । ‘नामजप’ का चरण पूर्ण कर ‘अखंड नामजप होते रहना’, इस स्थिति में आने के लिए साधक को १० से १५ वर्ष लग सकते हैं । इसमें ४ – ५ वर्षों में केवल ४-५ प्रतिशत प्रगति ही संभव है । तदुपरांत वह साधना के अगले चरण ‘सत्संग’ में आता है । इस गति से साधना में आगे जाना हो, तो एक जन्म में साधना पूर्ण नहीं हो सकती । इसलिए साधना में जिस चरण पर साधक होगा, उसके अगले चरण का थोडा-थोडा प्रयत्न करता रहे, तो साधक की प्रगति होने का वेग बढता है, उदा. नामजप करते हुए ही ‘सत्संग’ चरण के भी प्रयत्न किए तो आध्यात्मिक प्रगति की गति बढती है । इसी नियम के आधार पर गुरुकृपायोग में प्राथमिक चरण के साधक को स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नाम, सत्संग, सत्सेवा, भावजागृति, त्याग एवं प्रीति, इन आठ चरणों पर एकत्रित प्रयत्न करने के लिए कहा जाता है । इसलिए इस योगमार्ग में अन्य साधनामार्गों की तुलना में प्रगति शीघ्र होती है ।
यही बात ‘निर्विचार’ नामजप के संदर्भ में भी लागू होती है । यह जप होने हेतु साधक का आध्यात्मिक स्तर न्यूनतम ६० प्रतिशत होना चाहिए, अर्थात उसका मनोलय आरंभ होना आवश्यक है । तदुपरांत वह साधक निर्विचार स्थिति प्राप्त कर सकता है; परंतु यदि वह आरंभ से ही ‘निर्विचार’ नामजप करे, तो उसके मन पर इस नामजप का थोडा-बहुत संस्कार शीघ्रता से होता है । इससे आठ चरणों की साधना कर, आगे मनोलय के चरण पर जाने के लिए आवश्यक अवधि की तुलना में अल्प समय में वह इस चरण तक पहुंच सकता है ।
६० प्रतिशत से अल्प आध्यात्मिक स्तर के साधक को कौन-सा नामजप करना चाहिए ?
‘निर्विचार’ नामजप ‘निर्गुण’ स्थिति तक ले जाता है । इसलिए कुलदेवता का नामजप करनेवाले साधकों को अथवा ६० प्रतिशत से न्यून आध्यात्मिक स्तर के साधकों के लिए यह नामजप करना कठिन हो सकता है । इसलिए वे जो जप सदैव करते हैं, उसके साथ ही यह नामजप करने का प्रयत्न करें । जब यह नामजप होने लगे, तब यही जप निरंतर करें । इसलिए अंततः साधना के अगले चरण में पूरे समय यही नामजप करना है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
केवल ‘निर्विचार’ जप करना संभव न हो रहा हो तो ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः ।’ यह नामजप करें ! ‘कुछ साधकों को केवल ‘निर्विचार’ जप करना कठिन अनुभव हो सकता है । ऐेसे में वे ‘ॐ निर्विचार’ यह नामजप करके देखें । |