संत भक्‍तराज महाराजजी से संबंधित ग्रंथ !

प.पू. भक्‍तराज महाराजजी

संत भक्‍तराज महाराजको छायाचित्रात्‍मक श्रद्धांजलि

किसी संतका चरित्र पढनेपर उस संत तथा उनके आश्रमके दर्शन करनेकी इच्‍छा होती है ।
अबतक हुए ऋषि-मुनि, संत ज्ञानेश्‍वर, संत तुलसीदास आदि संतोंके छायाचित्र उपलब्‍ध नहीं हैं । हमारा परम भाग्‍य है कि संत भक्‍तराज महाराजजीके छायाचित्र उपलब्‍ध हैं । इन ग्रंथोंके छायाचित्रोंमें महाराजजीकी विविध भाव-अवस्‍थाओंके दर्शन होते हैं ।
शब्‍द, स्‍पर्श, रूप, रस, गंध एवं उनकी शक्‍ति अथवा चैतन्‍यका सह-अस्‍तित्‍व होता है । इस नियमानुसार जिस प्रकार नामके साथ शक्‍ति अथवा चैतन्‍य आता है, उसी प्रकार रूपद्वारा भी वह शक्‍ति अथवा चैतन्‍य प्रक्षेपित होता है । महाराजजीके दर्शन करते समय भी साधकोंको यही अनुभूति होगी ।

संत भक्‍तराज महाराज विरचित भजनामृत

भजन, भ्रमण एवं भंडारा, यही प.पू. भक्‍तराज महाराजजी का (प.पू. बाबा का) जीवन था ।
उन्‍होंने नाम(जप)का प्रसार भजनोंके माध्‍यमसे किया । उनके द्वारा स्‍वयं भजन गाने से हमें नादशक्‍तिका भी लाभ मिलता है । गत चालीस वर्ष से बाबा द्वारा वही भजन पुनः-पुनः गानेसे उनके भजनोंके प्रत्‍येक अक्षरपर संस्‍कार अंकित हो गए हैं, जिससे उनमें शब्‍दशक्‍ति भी अत्‍यधिक मात्रामें बढ गई है । इन सभी कारणोंसे ये भजन मात्र भजन न रहकर प्रासादिक अर्थात प्रसादस्‍वरूप हो गए हैं । भजनोंके पुनः-पुनः गानेसे उन्‍हें ‘भजनामृत’ अर्थात ‘भजनरूपी अमृत’ क्‍यों कहा है, इसका भी अनुभव श्रोता कर सकते हैं । साधकोंको मोक्षतक ले जानेका सामर्थ्‍य इन भजनोंमें है । इसलिए यह ग्रंथ अवश्‍य पढें !

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