‘हिन्दुओं, हम सब में समाई इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति द्वारा हमें सब कुछ प्राप्त होगा; क्योंकि हिन्दू धर्म में पुनरुत्थान की एक अद्भुत शक्ति समाहित है । विश्व के अनेक बडे-बडे देश, जाति और राज्य नष्ट हो गए; परंतु हम अभी भी अस्तित्व में हैं; क्योंकि हममें वैसा अमर चैतन्य है ।
स्थापयध्वमिमं मार्गं प्रयत्नेनापि हे द्विजाः ।
स्थापिते वैदिके मार्गे सकलं सुस्थितं भवेत् ।।
– सूतसंहिता, अध्याय २०, श्लोक ५४
अर्थ : हे द्विजों, सनातन धर्म की स्थापना के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करें । सनातन वैदिक हिन्दू धर्म स्थिर होते ही सब कुछ स्थिर और ऐश्वर्य संपन्न हो जाएगा ।
ईश्वरीय नियोजनानुसार वर्ष २०२३ में भारत में ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होने ही वाला है । संत और द्रष्टाओं को भी उसकी पदचाप सुनाई दे रही है । भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने पर गोप-गोपियों ने स्वयं का कर्तव्य समझकर गोवर्धन पर्वत को अपनी-अपनी लकडियां लगाईं, उस अनुसार हमें भी हिन्दू राष्ट्र-स्थापना में अपने कर्तव्य का पालन करना है । यदि हमने साधना समझकर हिन्दू राष्ट्र के लिए कार्य किया, तो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के साथ स्वयं का भी उद्धार होगा ।’