कृतज्ञ हैं हम आपके चरणों में महर्षिजी । गुरुदेवजी ने दिए अवताररूप में दर्शन ।।

     महर्षियों ने लाखों वर्ष पूर्व नाडीपट्टिकाओं में लिखकर रखा है कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी तो महाविष्णु के ही अवतार हैं ।’ साधकों को इस विष्णुतत्त्व का लाभ मिलने हेतु और महर्षियों की आज्ञा के अनुसार गुरुदेवजी ने पूर्व में मनाए गए उनके जन्मोत्सवों के उपलक्ष्य में स्वयं को आत्यंतिक शारीरिक कष्ट होते हुए भी श्रीविष्णु के विविध रूपों में दर्शन दिए । परात्पर गुरु डॉक्टरजी का यह रूप साधकों ने अपने हृदयमंदिर में संजोकर रखा । उन विष्णुमय क्षणों का पुनर्स्मरण होने हेतु यह पृष्ठ श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुचरणों में समर्पित कर रहे हैं !

पापमुक्त करानेवाला डोलोत्सव !

     ‘श्रीविष्णु को झूले पर बिठाकर उनकी स्तुति करते हुए धीरे-धीरे झूला झूलाने’ को डोलोत्सव कहा जाता है । पद्मपुराण में भगवान श्रीविष्णु के डोलोत्सव का उल्लेख किया गया है । ‘झूले पर झूला झूलनेवाले श्रीकृष्ण के दक्षिणाभिमुख होकर दर्शन करने से पापों के भार से मुक्ति मिलती है’, ऐसा बताया जाता है ।

     मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, द्वारका, डाकोर (गुजरात) आदि श्रीकृष्ण मंदिरों में, तथा तिरुपति बालाजी मंदिर में भी नियमित रूप से श्रीजी का डोलोत्सव मनाया जाता है ।

विष्णुतत्त्व जागृत करनेवाला डोलोत्सव ।

     महर्षियों ने श्रीविष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का डोलोत्सव करने के संदर्भ में बताया कि ‘साधकों द्वारा की गई स्तुति के कारण और गुरुदेवजी के झूले को धीरे से झुलाने के कारण श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान श्रीविष्णुतत्त्व धीरे से जागृत होगा और विश्व के सभी साधकों को उनके चैतन्य का लाभ मिलेगा ।’

     वास्तव में झूले पर बैठे हुए परात्पर गुरुदेवजी के दर्शन से साधकों को सुंदर अनुभूतियां हुईं और उनमें श्रीविष्णु के प्रति भक्तिभाव जागृत हुआ ।

     परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कभी नहीं कहा है, ‘मैं अवतार हूं या मैंने अपना अवतारी कार्य प्रारंभ किया है ।’ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी विष्णु के अवतार हैं, ऐसा महर्षियों ने नाडीपट्टिका में कहा है । साधकों का एवं सनातन प्रभात की संपादक समिति का महर्षियों के प्रति भाव (श्रद्धा) है, इसलिए यह विशेषांक प्रकाशित कर रहे हैं । – संपादक