हंगरहळ्ळी (कर्नाटक) की श्री विद्याचौडेश्वरी देवी का मार्गदर्शन
हंगरहळ्ळी (कर्नाटक) – ‘‘कोरोना महामारी का संकट वर्ष २०२३ तक बना रहेगा । कोरोना को रोकने हेतु न्याय, नैतिकता एवं धर्माचरण ही महाऔषधि (रामबाण औषधि) है । यही शाश्वत औषधि है ।’’ ऐसा मार्गदर्शन यहां की सुप्रसिद्ध श्री विद्याचौडेश्वरी देवी ने किया है । कर्नाटक के तुमकुर जनपद के कुणिगल तहसील में स्थित हंगरहळ्ळी का श्री विद्याचौडेश्वरी देवी मंदिर एक जागृत देवस्थान है । भक्तों के मन की इच्छा को पहचानकर उसका उत्तर देने की अद़्भुत पद्धति के कारण देवी विख्यात हैं । कन्नड समाचार वाहिनी ‘टीवी ९’ द्वारा १२ जुलाई को प्रसारित ‘हिगू उंटे (क्या ऐसा भी होता है ?)’ कार्यक्रम में कोरोना महामारी के संदर्भ में जानने हेतु समाचार वाहिनी के पत्रकार ने श्री विद्याचौडेश्वरी देवी से कुछ प्रश्न पूछे । तब देवी ने उक्त मार्गदर्शन किया ।
श्री विद्याचौडेश्वरी देवी से पूछे गए प्रश्न तथा देवी ने उनपर किया हुआ मार्गदर्शन
प्रश्न : कोरोना की उत्पत्ति चीन में ही क्यों हुई ? तथा उसकी उत्पत्ति का क्या रहस्य है ?
मार्गदर्शन : यह अनेक युगों से चलता आ रहा है । प्रत्येक १०० वर्षों के उपरांत ऐसे किसी संकट का सामना करना पडता है । इसके लिए राजलोभ (सत्ता का लोभ) तथा धनलोभ कारणभूत है । इनकी प्राप्ति की लालसा के कारण ही मनुष्य द्वारा ऐसे विषाणुआें की उत्पत्ति की जाती है । राजलोभ, धन का उन्माद तथा अधिकाधिक धन प्राप्त करने के मोह के कारण ही इस विषाणु की उत्पत्ति हुई । आजकल सभी राजलोभ से ग्रसित हैं । सभी ने यह एकमात्र लक्ष्य सामने रखा है । एक युग का अंत होकर उसके अगले युग के आरंभ के समय ऐसे लोगों का नाश होता है । तब उस संबंधित देशों के लोगों का नाश होता है; परंतु कर्मभूमि एवं धर्मदेश का नाश नहीं होता । चीन ने यह सब अपने स्वार्थ के लिए किया है; इसलिए चीन का सर्वनाश अटल है ।
प्रश्न : कोरोना कितने समय लोगों में रहेगा ?
मार्गदर्शन : वर्ष २०२३ तक यह विषाणु बना रहेगा । जीवन में बदलाव करने का आदेश प्राप्त हुआ है । अभी से सतर्क रहे तो संकट नहीं आएगा; परंतु हम सतर्क नहीं रहे, तो संकट आते रहेंगे ।
प्रश्न : इसकी औषधि (उपाय) क्या है ?
मार्गदर्शन : न्याय, नैतिकता एवं धर्माचरण ही इसकी रामबाण औषधि है । यही एक शाश्वत औषधि है ।
प्रश्न : कोरोना संकट का क्या उपाय है ?
मार्गदर्शन : उसके (चीन के) राज्यकर्ता ने राजलोभ के कारण इस महामारी की उत्पत्ति की है । अब भारत का जो राजा (प्रधानमंत्री) है, उसी को उपाय सुझाने का समय आया है और उसी के द्वारा उपाय सुझाया जाएगा । यह राजा (भारत के प्रधानमंत्री) ‘चीन सहित सभी देशों से यह रोग नष्ट होकर सभी का कल्याण हो’, इस भाव से इस रोग का लवण (टीका) तैयार करने हेतु प्रधानता ले रहा है । इसपर ७० प्रतिशत कार्य पूर्ण हुआ है और ३० प्रतिशत अभी शेष है । इसपर निश्चित रूप से लवण बनेगा ।
प्रश्न : देवी ने बताया है कि ‘इसके लिए कुछ नियमों का कठोरता से पालन करना पडेगा ।’ ये नियम अथवा आचरण कौन से हैं ?
मार्गदर्शन : पहले संकट के समय लोग ३ शक्तियों से प्रार्थना करते थे । अब भी विश्व के समस्त मानवकुल को जगन्माता त्रिपुरसुंदरी की, अर्थात मेरी आराधना करनी चाहिए, संकल्प लेने चाहिए । सवेरे एवं सायंकाल में २ दीप जलाकर एवं नामजप कर, ‘हे जगन्माता, हम पर आनेवाला संकट आप दूर करें’, यह प्रार्थना करने से मैं तुम्हारी रक्षा के लिए दौडी आऊंगी ।
श्री विद्याचौडेश्वरी देवी की भक्तों के प्रश्नों के उत्तर देने की विशेषतापूर्ण पद्धति !

प.पू. श्री श्री श्री बालमंजुनाथ महास्वामीजीश्री विद्याचौडेश्वरी देवी भक्तों के प्रश्नों के उत्तर देते समय सदैव सांकेतिक लिपि में (देव लिपि में) उत्तर लिखती हैं । देवी लिखती हैं, इसका अर्थ श्री मठ के प.पू. श्री श्री श्री बालमंजुनाथ महास्वामीजी एवं अन्य एक सेवक श्री विद्याचौडेश्वरी देवी की मूर्ति को पकडकर रखते हैं । तब देवी स्वयं ही आगे की ओर झुककर अपने मुकुट पर स्थित कलश से सामने स्थित पटल पर रखी हुई हलदी में प्रश्नों का सांकेतिक लिपि में उत्तर देती हैं । प.पू. श्री श्री श्री बालमंजुनाथ महास्वामीजी इस समय देवी द्वारा किए गए मार्गदर्शन भक्तों को विस्तृत रूप से समझाकर बताते हैं ।