सरोगेसी (कृत्रिम गर्भाधान) एवं पशुओं के माध्यम से होनेवाली तस्करी तथा पशुहत्या रोकने हेतु प्रयास करनेवाली मुंबई की अधिवक्ता सिद्धविद्या !

मुंबई की अधिवक्ता  सिद्धविद्या का जन्म रांची (झारखंड) में हुआ । बचपन से ही उनमें गोमाता के प्रति विलक्षण प्रेम था । उन्हें गाय के स्वप्न आते थे । उन्हें स्वप्न में अनेक बार ‘कसाईयों ने गायों को पकडा है तथा उन गायों की रक्षा करने के लिए वहां कोई नहीं है’, ऐसा दिखाई देता था, जिसके कारण उसके प्रति उन्हें बहुत ही खेद प्रतीत होता था । इस प्रकार उनमें बचपन से ही गोमाता की रक्षा का कार्य करने की तीव्र इच्छा थी । ‘इसके पीछे उनके पूर्वजन्म की साधना तथा गोमाता के प्रति प्रेम हो सकता है’, ऐसा वे मानती हैं ।

सिद्धविद्या ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कत्थक नृत्य एवं  शास्त्रीय गायन में भी निपुणता प्राप्त की है । उन्होंने काशीविश्वेश्वर के मंदिर में गायन भी किया है । उन्होंने ये कलाएं आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में सीखीं । पशुओं की रक्षा हेतु उन्होंने भाजपा की पूर्व सांसद मेनका गांधी के साथ भी कार्य किया है । आज हम अधिवक्ता सिद्धविद्या के कार्य के विषय में उन्हीं के द्वारा दी जानकारी लेते हैं ।

अधिवक्ता सिद्धविद्या

विशेष स्तंभ

छत्रपति शिवाजी महाराजजी के हिन्दवी स्वराज्य हेतु उनके वीर योद्धाओं का त्याग सर्वोच्च है । उनकी भांति आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक धर्म-राष्ट्र की रक्षा हेतु ‘वीर योद्धा’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । उनकी तथा उनके हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु संघर्ष की जानकारी देनेवाले ‘हिन्दुत्व के वीर योद्धा’ स्तंभ के माध्यम से अन्यों को भी प्रेरणा मिलेगी । इन उदाहरणों से आपके मन की चिंता दूर होकर उत्साह जागृत होगा !

– संपादक

१. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा इंग्लैंड से कानून की शिक्षा ग्रहण की !

अधिवक्ता सिद्धविद्या की महाविद्यालयीन शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई । महाविद्यालय में उन्होंने ‘एनिमल लॉ’ का (पशु कानून का) अध्ययन किया । वर्ष २००६ में ‘इंटरनैशनल कमर्शियल आर्बिटेशन’ में (‘अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक आयोग’ में) शिक्षा प्राप्त करने हेतु वे इंग्लैंड चली गईं । वहां उन्होंने ‘इंटरनैशनल कमर्शियल आर्बिटेशन’ की शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही ‘वल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन लॉ’ (विश्व व्यापार संगठन के संबंध में कानून) तथा ‘ह्मयूमन लॉ’ (मानवाधिकार से संबंधित कानून) का भी अध्ययन किया । यह अध्ययन पूरा होने पर वे पुनः भारत आईं । भारत आने पर उन्होंने देहली के एक निजी ‘लॉ फर्म’ में (कानून से संबंधित प्रतिष्ठान में) काम किया । उसके उपरांत विवाह सुनिश्चित होने पर वे मुंबई आईं । मुंबई में कुछ समय तक ‘लॉ फर्म’ में काम करने के उपरांत उन्होंने स्वतंत्ररूप से काम करना आरंभ किया ।

सत्य के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विरुद्ध लडी सफलतापूर्ण कानूनी लडाई

सिद्धविद्या काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्रनेता के रूप में कार्यरत थीं । उस समय छात्रों के अधिकारों के लिए लडते समय एक प्रकरण में उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया । तब सिद्धविद्या ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विश्वविद्यालय के विरुद्ध अभियोग प्रविष्ट किया । इस अभियोग का निर्णय उनके पक्ष में आया । न्यायालय ने उन्हें पुनः विश्वविद्यालय में लेने का निर्णय दिया; परंतु उसके उपरांत भी उन्हें विद्यालय में प्रवेश नहीं दिया गया । उस पर उच्च न्यायालय की अवमानना हुई; इसके लिए उन्होंने मान-हानि याचिका प्रविष्ट की । उस पर उच्च न्यायालय ने उन्हें विश्वविद्यालय में पुनः प्रवेश देने का तथा परीक्षा देने की अनुमति देने का तथा विश्वविद्यालय के कुलगुरु को बंदी बनाने का आदेश दिया । आगे जाकर सिद्धविद्या ने परीक्षा दी; परंतु उन्हें परीक्षा का परिणाम तथा मार्क्सशीट (गुणपत्रिका) नहीं दिए गए । उसके विरुद्ध भी उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । अंततः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने उनकी परीक्षा का परिणाम तथा मार्क्सशीट (गुणपत्रिका) उनके घर भेजा । इस प्रकार उन्होंने स्वयं के अधिकारों के लिए तथा सत्य के लिए छात्रजीवन से ही कानूनी लडाई लडी । इन सभी कानूनी लडाईयों में उन्होंने अपना पक्ष स्वयं रखा, यह बात महत्त्वपूर्ण है तथा उसमें वे सफल भी रहीं । छात्रजीवन से ही उनमें सत्य के लिए लडने की प्रेरणा है, इससे यह दिखाई देता है ।
आगे जाकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ही सिद्धविद्या ने वकालत की शिक्षा ग्रहण की तथा विश्वविद्यालय की छात्राओं में वे ‘टॉपर’ (सर्वाेच्च स्थान पर) रहीं । विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘स्कॉलरशिप’ (छात्रवृत्ति) प्रदान की ।

२. गोहत्या रोकने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में महाराष्ट्र सरकार की अधिवक्ता के रूप में कार्यरत !

अधिवक्ता सिद्धविद्या

महाराष्ट्र में वकालत करते समय गोहत्या रोकने हेतु अधिवक्ता सिद्धविद्या ने विशेष कार्य किया । गोहत्या में पकडे गए कसाईयों को जमानत न मिले; इसके लिए प्रयास करना; गोप्रेमियों की ओर से याचिका प्रविष्ट करना, उनकी कानूनी सहायता करना आदि कार्य वे कर रही थीं । महाराष्ट्र में जब गोवंश हत्या बंदी कानून आनेवाला था, उस समय अधिवक्ता सिद्धविद्या ने यह कानून बनाने के लिए प्रयास किए । भविष्य में गोहत्या के प्रकरणों में सर्वाेच्च न्यायालय में राज्य सरकार का पक्ष रखने हेतु ‘महाराष्ट्र सरकार की अधिवक्ता’ के रूप में सिद्धविद्या की नियुक्ति की गई । वर्तमान में गोहत्या एवं गोवंश हत्या रोकने हेतु अधिवक्ता सिद्धविद्या महाराष्ट्र सरकार की अधिवक्ता के रूप में सक्षमता से कार्य कर रही हैं । जब मुंबई उच्च न्यायालय ने गोहत्या बंदी कानून में समाहित २ अनुच्छेद हटाए, तब अधिवक्ता सिद्धविद्या ने उसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अभ्यासपूर्ण याचिका प्रविष्ट की । इस अवधि में उन्होंने २ माह तक स्वयं की वकालत तथा कार्यालय का कार्य पूर्ण रूप से बंद कर इसी याचिका पर अपना ध्यान केंद्रित किया । इस अवधि में उन्होंने अपने पास के अभियोग का दायित्व अपने सहयोगियों को सौंपकर इसी अभियोग को प्रधानता देते हुए पूरा अध्ययन कर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । अभी यह अभियोग आरंभ होनेवाला है ।

३. प्रशुओं के माध्यम से होनेवाली अवैध तस्करी रोकने हेतु स्वतंत्र कानून लाने में रहा महत्त्वपूर्ण योगदान

भारत से विदेशों में बडी संख्या में जीवित पशुओं की बिक्री हो रही थी, विशेषकर ईद की अवधि में बडी संख्या में बकरों का निर्यात होता था । भारत में जिस मूल्य पर इन पशुओं की बिक्री होती थी, उसी मूल्य में ये पशु विदेशों में बेचे जाते थे, जो चौंकानेवाली बात थी । इसमें पशुओं के शरीर से मादक पदार्थ, हथियार, भ्रष्टाचार के पैसे आदि की तस्करी होने की संभावना थी । पशुओं का यह यातायात समुद्री मार्ग से चलता था । इससे पूर्व विदेश ले जानेवाले पशुओं की पडताल नहीं होती थी, अतः पशुओं के माध्यम से अवैध तस्करी करना सुलभ था । यह विषय केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों से संबंधित था ।

केंद्र सरकार से संबंधित सभी विभागों के साथ पत्राचार कर हमने इस गंभीर विषय की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया । उसके उपरांत केंद्र सरकार ने इस संबंध में कानून बनाया । इस कानून के द्वारा समुद्री मार्ग से पशुओं का यातायात करने पर प्रतिबंध लगाया गया । अधिवक्ता सिद्धविद्या की याचिका के कारण देशविघातक कृत्यों पर लगाम लगाई जा सकी । केवल महाराष्ट्र ही नहीं, अपितु पूरे देश में ऐसी घटनाएं न हों; इसके लिए केंद्र सरकार ने यह कानून बनाया । देश की दृष्टि से यह बहुत बडी सफलता सिद्ध हुई ।

४. ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधारण)की आड में चल रहा रैकेट रोकने हेतु कानून में संशोधन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका !

‘सरोगेसी’ के (कृत्रिम गर्भाधान के) नाम पर बडा रैकेट

मेरे पास आए एक प्रकरण से राज्य में ‘सरोगेसी’ के (कृत्रिम गर्भाधान के) नाम पर बडा रैकेट चलने की बात ध्यान में आई । इसमें धनवान लोग अन्य राज्यों से गरीब महिलाओं को लाकर बच्चों को जन्म देने के लिए उनके गर्भाशय का उपयोग कर रहे थे तथा ये घटनाएं व्यावसायिक उद्देश्य से चल रही हैं, ऐसा ध्यान में आया । इसमें कुछ चिकित्सालय भी संलिप्त थे । ऐसे प्रकरणों में डॉक्टर्स संबंधित लोगों से ३०-४० लाख रुपए लेते थे; परंतु अपने पेट में गर्भ पालनेवाली महिलाओं को बहुत अल्प पैसे देते थे । भारत में ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) के द्वारा बच्चों को जन्म देना कानूनन वैध होने से विदेशों से अनेक लोग इसके लिए भारत आ रहे हैं, ऐसा ध्यान में आया । यह काम व्यावसायिक दृष्टि से चल रहा था तथा इसमें एक रैकेट था । भारत मानो ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) का मुख्य केंद्र (हब) बन गया था । पहले बच्चा गोद लिया जा सकता था; परंतु इससे गोद लिए गए बच्चों का उपयोग अनुचित कृत्यों में किया जा रहा है, यह बात ध्यान में आने पर उस पर प्रतिबंध लगाया गया । कानूनी प्रतिबंध लगने के उपरांत यह रैकेट चलानेवाले ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) की ओर मुडे तथा महाराष्ट्र सहित पूरे देश में व्यावसायिक ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) की घटनाओं में बडे स्तर पर वृद्धि हुई । ऐसी घटनाओं की सूचना मिले, इसके लिए महाराष्ट्र की सभी महानगरपालिकाओं से ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) के प्रकरणों की जानकारी प्राप्त हो, इसके लिए आवेदन दिया; परंतु महाराष्ट्र का एक भी चिकित्सालय ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) की प्रविष्टियां नहीं रखता था, यह बात ध्यान में आई, जो बहुत ही गंभीर थी । हमने इसकी ओर महाराष्ट्र सरकार का ध्यान आकर्षित किया । इसके उपरांत ऐसी घटनाओं की जांच के लिए राज्य सरकार ने समिति का गठन किया । इस विषय से हमने बाल अधिकार रक्षा आयोग को अवगत कराया । इसकी गंभीरता को ध्यान में लेकर केंद्र सरकार ने कानून बनाकर व्यावसायिक ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) पर प्रतिबंध लगाया । ‘वर्तमान  में केवल स्वयं से संबंधित महिला का उपयोग ही ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) के लिए किया जा सकता है, इस कानून में ऐसा प्रावधान है । इस प्रकार महाराष्ट्र तथा पूरे देश में ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) के नाम से चल रहे इस अनुचित एवं अभद्र रैकेट पर लगाम लगाने में अधिवक्ता सिद्धविद्या ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । व्यावसायिक ‘सरोगेसी’ (कृत्रिम गर्भाधान) के माध्यम से चलनेवाले अवैध कृत्य तथा मानवीय तस्करी की घटनाएं रोकी गईं, जो बडी सफलता सिद्ध हुई ।

५. लव जिहाद रोकने में महत्त्वपूर्ण कार्य !

अधिवक्ता सिद्धविद्या के पास आई एक युवती के साथ की गई मारपीट के प्रकरण के पीछे एक अलग ही कारण होने की बात उनके ध्यान में आई । उससे पूर्व ‘लव जिहाद’ के विषय में उनका कोई अध्ययन नहीं था; परंतु बिहार से आए कुछ मुसलमान युवक विवाहित होते हुए भी महाराष्ट्र आकर वे यहां की हिन्दू युवतियों को प्रेमजाल में फंसाकर उनके साथ विवाह कर रहे हैं, यह गंभीर बात ध्यान में आई । ये अपना पहला विवाह छिपाते थे । उनके पास आई एक बौद्ध युवती के साथ भी ऐसा ही घटित हुआ । उसके उपरांत कानूनी सहायता के लिए जब ऐसे प्रकरण उनके पास आए, तब ये घटनाएं लव जिहाद की हैं, यह बात उनके ध्यान में आई । उसके उपरांत हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों की सहायता से लव जिहाद में फंसी युवतियों को कानूनी सहायता करना तथा उनका उद्बोधन करना जैसा कार्य उन्होंने आरंभ किया ।

६. मुंबई में खुलेआम होनेवाली पशुहत्याएं रोकने हेतु किए सफल प्रयास

ईद की अवधि में मुंबई महानगरपालिका की ओर से पशुहत्या करने के लिए ऑनलाइन पद्धति से अनुमति दी जाती थी । उसके कारण मुंबई में सडकों पर, साथ ही सोसाइटियों में खुलेआम पशु काटे जाते थे । इस प्रकार पशुहत्या करने के लिए ऑनलाइन अनुमति न दी जाए, इसके लिए अधिवक्ता सिद्धविद्या ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । इसकी परिणामकारकता ध्यान में आए, इसके लिए अधिवक्ता सिद्धविद्या तथा उनके सहयोगी अधिवक्ताओं ने इस अभियोग में  न्यायाधीश ओक के न्यायालय में, साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास पशु काटने की अनुमति मांगने के लिए मुंबई महानगरपालिका को ऑनलाईन आवेदन दिया । महानगरपालिका ने इन दोनों आवेदनों को अनुमति दी । अधिवक्ता सिद्धविद्या ने मुंबई उच्च न्यायालय में न्यायाधीश ओक की खंडपीठ के सामने ये अनुमतियां प्रस्तुत कीं, उससे पशुहत्या के लिए ऑनलाइन अनुमति देने की पद्धति की भयावहता उच्च न्यायालय के ध्यान में आई । उसके उपरांत मुंबई महानगरपालिका ने पशुहत्या के लिए ऑनलाइन अनुमति देना बंद कर दिया । मुंबई में खुलेआम होनेवाली पशुहत्याएं अधिवक्ता सिद्धविद्या तथा उनके सहयोगियों के कारण बंद हुईं ।

७. पशुओं के यातायात की दयनीय स्थिति के विरुद्ध उठाई आवाज !

महाराष्ट्र राज्य में पशुओं का यातायात करते समय पशुओं को अत्यंत क्रूरतापूर्ण पद्धति से वाहनों में ठूंसा जाता है । इस विषय में कानून होते हुए भी वाहन यातायात विभाग के अधिकारियों को इस कानून की विशेष जानकारी नहीं थी । अधिवक्ता सिद्धविद्या ने मुंबई उच्च न्यायालय को इसका ध्यान दिलाया । इस विषय में उन्होंने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है, जो अभी लंबित है ।

८. न्यायालय के आदेश के कार्यान्वयन के लिए व्यवस्था बनाए जाने हेतु प्रयासरत !

सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों की ओर से समय-समय पर समाजहित में आदेश दिए जाते हैं अथवा समाजहित के विषय में निरीक्षण संज्ञानित किए जाते हैं; परंतु उनका पालन नहीं होता । उसके कारण नागरिकों को बार-बार न्यायालय जाना पडता है । इसमें न्यायालयों तथा नागरिकों का समय व्यर्थ होता है । जनहित याचिका प्रविष्ट करनेवाले व्यक्ति की मृत्यु होने के उपरांत उस समस्या की ओर ध्यान देनेवाला कोई नहीं होता । ‘न्यायालयों द्वारा दिए गए आदेश तथा निरीक्षणों का पालन हो रहा है न ?, इसके लिए न्यायालय की एक व्यवस्था होनी चाहिए’, इस महत्त्वपूर्ण सूत्र के लिए अधिवक्ता सिद्धविद्या ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । यह विषय बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा भविष्य में इस याचिका से समाजहित में निर्णय हो पाएगा ।

इसके साथ ही वृक्षारोपण एवं नई मुंबई के प्रस्तावित हवाई अड्डे के लिए भूमि अधिग्रहित करते समय न्यायालय गोमाता, गोवंश आदि पशुओं के लिए भी भूमि उपलब्ध कराए तथा चरवाहों पर किए गए अतिक्रमण हटाए जाएं आदि विविध विषयों पर अधिवक्ता सिद्धविद्या काम कर रही हैं । अधिवक्ता सिद्धविद्या के सामाजिक कार्य में बहुमूल्य योगदान को ध्यान में लेकर विभिन्न संगठनों एवं संस्थाओं ने उन्हें अनेक पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया है ।

शंकराचार्य जी द्वारा ‘सिद्धविद्या’ नामकरण किया जाना !

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी ने सिद्धविद्या के घर में शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा की थी । उसके कारण उनके घर में पहले से ही शिवआराधना होती थी । सिद्धविद्या के पिता ने द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी से दीक्षा ग्रहण की थी । सिद्धविद्या जब ६ वर्ष की थीं, उस समय उनके पिता उन्हें शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी के पास लेकर गए थे । उस समय शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी ने इस छोटी बच्ची को देखकर स्वयं ही उनका नाम ‘सिद्धविद्या’ रखा । उस समय शंकराचार्यजी ने सिद्धविद्या के पिता से कहा, ‘इसके सिद्धविद्या नाम के साथ अन्य कोई भी नाम न जोडा जाए । आगे जाकर यह लडकी समाज एवं राष्ट्र के लिए कार्य करेगी ।’ अतः आगे जाकर विद्यालय-महाविद्यालय में, साथ ही उनके विवाह के उपरांत भी उनका नाम ‘सिद्धविद्या’ ही रहा ।