अधिवक्ताओं का संगठन कर उन्हें समाज एवं राष्ट्र कार्य में सम्मिलित करनेवाले मुंबई के अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर !

विद्यार्थी-जीवन से ही समाजकार्य में रुचि रखनेवाले अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर महाविद्यालयीन जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कार्यरत थे । आरंभ में भुसावळ में संगठन का कार्य करने के पश्चात उनकी गुणविशेषताओं को देखते हुए उन्हें मुंबई का दायित्व दिया गया । मुंबई में गिरगांव, विलेपार्ले, सांताक्रूज, खार आदि विविध भागों के महाविद्यालयों में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य किया । प्रामाणिकता, सभी को साथ लेकर काम करना, नम्रता, सकारात्मकता, लगन जैसे गुणों के कारण विद्यार्थियों को उनके प्रति विश्वास निर्माण हो गया था । इस अवधि में उन्होंने विविध विधायक कार्य के लिए महाविद्यालय में पहल की । विद्यार्थी-जीवन से ही वे समाज एवं राष्ट्र हित का कार्य करते हुए उन्होंने कभी भी पुन: पीछे मुडकर नहीं देखा । अधिवक्ता बनने के पश्चात उन्होंने समाज एवं राष्ट्र कार्य की इस वसीयत में वृद्धि की । वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘अधिवक्ता परिषद’ के कोकण प्रांत के उपाध्यक्ष हैं । यह कार्य करते हुए उन्होंने अधिवक्ताओं को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । कानून की पदवी प्राप्त कर केवल स्वयं ही नहीं, अपितु युवा अधिवक्ताओं को भी निरपेक्षता से समाज एवं राष्ट्र कार्य से जोडकर लिया है । अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर का कार्य केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय स्तर पर भी अनोखा है । इस लेख के माध्यम से अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर के प्रेरणादायी कार्य का अवलोकन करेंगे !

अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर

१. चलचित्र (फिल्म) में अश्लीलता के विरुद्ध कानूनी लडाई  :

वर्ष २०२२ में महेश मांजरेकर का ‘नाय वरण भात लोणचा, कोण नाय कोणचा’ यह मराठी चलचित्र प्रदर्शित हुआ । इसके ‘ट्रेलर’ में (छोटे विज्ञापन के) अत्यंत समाजविघातक दृश्य थे । इसमें विद्यार्थियों को हिंसक एवं अश्लील कृत्य करते हुए दिखाया गया था, इसके साथ ही उनके संवाद भी अत्यंत अश्लील थे । अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने इस चलचित्र के निर्माता के विरुद्ध ‘पॉक्सो’ कानून के अंतर्गत अभियोग प्रविष्ट किया । परिणास्वरूप निर्माता को इस फिल्म से हिंसक एवं अश्लील दृश्य, साथ ही कुछ मात्रा में संवाद भी हटाने पडे थे । इस चलचित्र )(फिल्म) को दी गई नोटिस के कारण निश्चितरूप से यह कहा जा सकता है कि भविष्य में अश्लीलता तथा हिंसक चित्रण पर अंकुश लग गया है ।

विशेष सदर !

छत्रपति शिवाजी महाराजजी द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज्य के लिए जिसप्रकार मावळों (छत्रपति शिवाजी महाराजजी के सैनिकों को मावळे कहते थे) और धर्मयोद्धाओं द्वारा किया गया त्याग सर्वोच्च है, उसी प्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ तथा राष्ट्रप्रेमी नागरिक हिन्दू धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा के लिए ‘धर्मयोद्धा’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । निधर्मीवादी सरकार, साथ ही प्रशासन और पुलिस से होनेवाला कष्ट सहन करते हुए वे निःस्वार्थभाव से केवल राष्ट्र-धर्मरक्षा के लिए रात-दिन संघर्ष कर रहे हैं । आज राष्ट्रविरोधी शक्ति निधर्मीवादियों के समर्थन से बलवान होकर हिन्दूविरोधी, इसके साथ ही राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र करते हुए हमारे मन में ‘हिन्दुओं तथा राष्ट्र का आगे कैसे होगा ?’, ऐसी चिंता होती है । उस समय हिन्दुत्व तथा राष्ट्र की रक्षा के लिए लडनेवाले इन मावळों और धर्मयोद्धाओं के संघर्ष के उदाहरण पढने पर निश्चितरूप से हमारे मन की चिंता दूर होकर उत्साह निर्माण होगा । इसलिए हमने ऐसे धर्मयोद्धाओं तथा उनके हिन्दू धर्मरक्षा के संघर्ष की जानकारी देनेवाला ‘हिन्दुत्व के धर्मयोद्धा’ यह स्तंभ आरंभ किया है । इस माध्यम से भारत में सुराज्य निर्माण करने के लिए प्रयत्न करनेवालों की सभी को जानकारी होगी और उस दिशा में कार्य करने की प्रेरणा भी मिलेगी !

– संपादक

२. ‘करवाचौथ’ व्रत के विज्ञापन के माध्यम से भारतीय संस्कृति के हनन पर रोक !

‘डाबर’ प्रतिष्ठान के एक ‘फेसक्रीम’के विज्ञापन में करवाचौथ व्रत का दृश्य दिखाया गया था । भारतीय संस्कृति के अनुसार चंद्रोदय होने पर पत्नी पति का मुख देखकर यह व्रत तोडती है; परंतु इस विज्ञापन में एक महिला द्वारा अन्य महिला का मुख देखकर व्रत तोडते हुए दिखाया गया था । यह भारतीय संस्कृति का हनन था । अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने इसके विरुद्ध कानूनी नोटिस भेजी । इससे विविध वृत्तवाहिनियों तथा चैनल्स को यह विज्ञापन बंद करना पडा । इससे अनैतिकता एवं व्यभिचार पर अंकुश लगा ।

३. चलचित्र (फिल्म) के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की होनेवाली अपकीर्ति रोकी !

मार्च २०२१ में प्रदर्शित हुए ‘मुंबई सागा’ नामक हिन्दी चलचित्र में राष्ट्र्रकार्य के लिए प्रयत्नशील राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुचित चित्रण दिखाया गया था । इसमें दिखाया गया कि ‘भाऊ’ नामक व्यक्ति रा.स्व. संघ से जुडा है तथा मुंबई पुलिस पर उसका नियंत्रण है । यह व्यक्ति मुंबई पुलिस में अपने ही लोगों की भर्ती कर रहा है । वास्तव में ऐसा कुछ न होते हुए भी संघ की अपकीर्ति करनेवाले इस दृश्य के विरुद्ध संघ स्वयंसेवक श्री. महेश भिंगार्डे ने अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर के माध्यम से चलचित्र (फिल्म) निर्माता को कानूनी नोटिस भेजी । इसलिए निर्माता ने चलचित्र (फिल्म) के आपत्तिजनक दृश्य अस्पष्ट (ब्लर) कर दिए । एक हिन्दुत्वनिष्ठ तथा राष्ट्रनिष्ठ संगठन की अपकीर्ति रोकने के लिए कानूनी लडाई सभी हिन्दुत्वनिष्ठों का मनोबल बढानेवाली सिद्ध हुई ।

पत्नी अधिवक्ता सुनीता का पूर्ण सहयोग !

श्रीमती सुनिता साळसिंगीकर

अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर की पत्नी श्रीमती सुनीता भी अधिवक्ता हैं । वे भी विद्यार्थी-जीवन से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य कर रही हैं । ‘दर्द से हमदर्द तक’ संस्था की स्थापना से वे संस्था में सक्रिय हैं । महाविद्यालयों में कानून संबंधी मार्गदर्शन करना; ‘समाज में अपराधी प्रवृत्ति अल्प हो’, इसलिए युवावर्ग का प्रबोधन करना, कारागृह में बंदियों का प्रबोधन करना, इस संस्था के कार्य में उन्होंने स्वयं को झोंक दिया है । श्रीमती सुनीता के पूर्ण समर्थन से ही अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर अपने क्षेत्र में भरपूर योगदान दे पा रहे हैं । अपना व्यवसाय संभालते हुए पति-पत्नी दोनों द्वारा समर्पित भाव से किए जा रहे समाज एवं राष्ट्र्र कार्य, सभी के लिए प्रेरणादायी हैं ।

४. कानूनी लडाई से चलचित्र में श्रीराम का अनुचित चित्रण तथा रावण को श्रेष्ठ सिद्ध करना टला !

प्रतीक गांधी के ‘रावणलीला’ नामक हिन्दी चलचित्र (फिल्म) में ‘रामायण’ के एक प्रसंग में श्रीराम तथा रावण की भूमिका करनेवाले पात्रों का श्रृंगारगृह में संवाद दिखाया गया था । इसमें रावण की भूमिका करनेवाला कलाकार श्रीराम की भूमिका करनेवाले कलाकार से यह कहते हुए दिखाया गया था ‘श्रीराम ने सीता की अवहेलना एवं अनादर किया !’ इस संवाद में रावण को श्रेष्ठ तथा प्रभु श्रीराम का बिल्कुल अनुचित चित्रण दिखाया गया था । अच्छों का उदात्तीकरण करने के स्थान पर समाज में दृष्प्रवृत्तियों का उदात्तीकरण किया जा रहा था । इस विषय में अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने चलचित्र (फिल्म) के निर्माता को कानूनी नोटिस भेजी । इसलिए निर्माता ने चलचित्र (फिल्म)का नाम ‘रावणलीला’ से बदलकर ‘भवाई’ रखा, साथ ही चलचित्र (फिल्म) के आपत्तिजनक दृश्य भी निकाल दिए । इस कानूनी लडाई के कारण चलचित्र (फिल्म) में रावण का उदात्तीकरण गलत है, इसके प्रति में समाज में जागरूकता आई तथा जनता ने पूरी तरह से चलचित्र (फिल्म) की उपेक्षा की । परिणामस्वरूप वह चलचित्र (फिल्म) ‘फ्लॉप’ हो गया । इससे फिल्मजगत में संदेश गया कि हिन्दुओं के श्रद्धास्रोतों का अनादर करने से बहिष्कार का सामना करना होगा, साथ ही आर्थिक हानि उठानी पड सकती है । इस प्रकरण से कहा जा सकता है कि कुछ भी अनुचित दिखाने पर अंकुश लगाने में निश्चितरूप से मदद मिली ।

५. अधिवक्ताओं की छवि मलिन करनेवाले विज्ञापन को कानूनी नोटिस !

‘के.ई.आइ. वायर’ के विज्ञापन में एक अधिवक्ता के घर शॉटसर्किट हो जाता है । इसलिए वह अधिवक्ता न्यायालय में सोता है । न्यायालय में सोने के कारण वह जिस आरोपी का अभियोग लड रहा था, उसे दंड हो जाता है । इससे आरोपी क्रोधित होकर अधिवक्ता की पिटाई कर देता है । इसमें शॉटसर्किट टालने के लिए ‘के.ई.आइ. वायर’ उपयोग करने का संदेश दिया गया है; परंतु इस विज्ञापन में अधिवक्ता की छवि मलिन की गई है । इसके विरुद्ध अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने कानूनी नोटिस भेजी । परिणामस्वरूप इस प्रतिष्ठान को यह विज्ञापन बंद करना पडा ।

राज्यपाल के हस्तों गौरवान्वित !

अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर के सामाजिक योगदान को देखते हुए राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने कुछ दिन पूर्व ही उन्हें सम्मानित किया । अनेक मान्यवरों ने अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर तथा ‘दर्द से हमदर्द तक’ संस्था के कार्य की भरपूर प्रशंसा की है । भाजपा के वरिष्ठ नेता, केंद्रीय सडक परिवहन मंत्री नितीन गडकरी ने भी अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर एवं उनके सभी अधिवक्ता सहयोगियों की प्रशंसा की है ।

६. धारावाहिक में संत के अनादर के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई !

‘ठरले तर मग’ इस धारावाहिक में एक महिला ने अपने पालतु कुत्ते का नाम ‘चिन्नू’ रखा था । इस विज्ञापन में स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती तथा कुत्ते ‘चिन्नू’ का जन्मदिन एक ही दिन आता है, धारावाहिक में यह आपत्तिजनक संवाद दिखाया गया था । कुत्ते की तुलना स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के साथ की गई थी । इस पर आपत्ति कर अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने धारावाहिक के निर्माता को कानूनी नोटिस भेजी । ‘चिन्मय मिशन’ ने भी इस प्रकरण पर निर्माता को नोटिस भेजकर कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी । परिणामस्वरूप निर्माता को संतों का अनादर करनेवाला भाग हटाना पडा ।

७. अंतरधर्मीय विवाह किए दंपति तथा अभिभावकों में समन्वय समिति द्वारा सामाजिक एकीकरण कार्य में योगदान ! 

अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर के सामाजिक कार्य को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने अंतरधर्मीय विवाह किए दंपति तथा उनके अभिभावकों में समन्वय समिति ने ‘सदस्य’ के रूप में उनका चयन किया । अंतरधर्मीय विवाह के कारण टूटे हुए पारिवारिक संबंध जोडने के लिए इस समिति के माध्यम से उन्होंने काम किया । इससे अनेक अभिभावकों का अपनी संतान से पुनर्मिलन हुआ । इससे सामाजिक एकीकरण होने में सहायता हुई ।

८. ‘बेस्ट बेकरी’ अभियोग में अकारण ही नियंत्रण में लिए गए आरोपियों का अभियोग नि:शुल्क लडा ! :

वर्ष २००२ में गुजरात के ‘बेस्ट बेकरी’ अभियोग में २१ निर्दोष लोगों को आरोपी बनाया गया था । (इस प्रकरण में समूह द्वारा की गई आगजनी में १४ लोगों की मृत्यु हो गई थी ।) गुजरात न्यायालय ने इस प्रकरण में सभी आरोपियों को निर्दोष मुक्त कर दिया था; परंतु कुछ समय पश्चात सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करने पर न्यायालय ने इस अभियोग को पुन: नए सिरे से महाराष्ट्र में चलाने का आदेश दिया । यह अभियोग आरोपियों की ओर से अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर एवं उनके सहयोगियों ने नि:शुल्क लडा । झूठे प्रकरण में बंदी बनाए गए तथा १८ वर्ष अकारण ही कारागृह में बितानेवाले इन आरोपियों के पक्ष में अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर एवं उनके सहयोगी ने जोरदार ढंग से अपना पक्ष प्रस्तुत किया । इससे इस प्रकरण में मुंबई सत्र न्यायालय ने इन आरोपियों को निर्दोष मुक्त कर दिया ।

९. डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्या प्रकरण में हिन्दुत्वनिष्ठों को उलझाने के षड्यंत्र के विरुद्ध कानूनी लडाई !

महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के प्रकरण में अन्वेषण तंत्र ने सातत्य से अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों को इस प्रकरण में उलझाने का प्रयत्न किया । अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने न्यायालय में निरंतर बिना एक-दूसरे से तालमेल रखनेवाले (मैचलेस) प्रमाण प्रस्तुत करनेवाली अन्वेषण प्रणाली की पोल खोल दी । यह अभियोग लडने के लिए जिन हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ताओं ने योगदान दिया उसमें अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । इससे इस प्रकरण के ३ आरोपी निर्दोष मुक्त हुए तथा शेष आरोपियों को मुक्त करवाने के लिए अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर एवं उनके सहयोगी वैधानिकरूप से लड रहे हैं । अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर एवं उनके सहयोगियों द्वारा न्यायालय में किए गए वादविवाद के कारण आधुनिकतावदियों का षड्यंत्र उजागर हो गया ।

१०. आर्थिक कारणवश कारागृह में बंद ६०० से भी अधिक आरोपियों को कारागृह के बाहर निकालना !

अनेक आरोपी अच्छे अधिवक्ता न मिलने के कारण कारागृह में बंद पडे हैं । कारागृह में बंद इन आरोपियों को गलत मार्ग पर मोडने का प्रयत्न होता है । इसे टालने के लिए तथा वे सामान्य लोगों समान अपना नया जीवन आरंभ कर सकें, इसलिए इन्होंने ‘दर्द से हमदर्द तक,’ इस संस्था द्वारा कारागृह के ऐसे आरोपियों को अच्छे अधिवक्ता दिए । अधिवक्ता उपलब्ध न होने से कारागृह में फंसे ६०० से भी अधिक आरोपियों को ‘दर्द से हमदर्द तक,’ इस संस्था के माध्यम से गत २ वर्षाें में कारागृह के बाहर निकालने में सफलता मिली है । वर्तमान में इस संस्था से ७० से भी अधिक अधिवक्ता जुडे हैं । जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तथा अधिवक्ता नहीं मिल रहा है, ऐसे आरोपियों को इस संस्था से अधिवक्ताओं की सहायता नि:शुल्क दी जाती है । इससे नए बुद्धिमान अधिवक्ताओं को काम मिलता है तथा आर्थिक दृष्टि से दुर्बल आरोपियों को नि:शुल्क कानूनी सहायता मिलती है, साथ ही एक अच्छे जीवन का शुभारंभ करने में सहायता होती है ।

११. राज्य के सहस्रों नागरिकों को लाभ !

‘दर्द से हमदर्द तक’ नाम की इस संस्था द्वारा कारागृह में बंदियोेंं का समुपदेशन (काउंसलिंग) भी किया जाता है । ‘वकील आपल्या दारी’, अर्थात वकील हमारे दरवाजे पर, इस अभिनव उपक्रम के अंतर्गत इस संस्था द्वारा ‘चलता-फिरता न्यायालय’ की संकल्पना कार्यान्वित की जा रही है । इसमें ‘वैन’द्वारा राज्य के विविध भागों में अभावग्रस्त (जरूरतमंद) नागरिकों को कानून संबंधी सहायता की जाती है । इस संस्था द्वारा विदर्भ में अकोला, नागपुर, वाशिम, बुलढाणा आदि स्थानों पर, इसके साथ ही दुर्गम भागों में पारधी समाज के लोगों के लिए कानून संबंधी सहायता, दी जाती है । इस सहायता के लिए ‘हेल्पलाईन’ क्रमांक भी दिया गया है । पारिवारिक समस्याओं से ग्रस्त विशेषरूप से वृद्ध नागरिकों को इसका बहुत लाभ हो रहा है । अब तक सहस्रों नागरिकों को विशेषरूप से वरिष्ठ नागरिकों (सीनियर सिटिजन)को इसका लाभ हुआ है । ‘पॉक्सो’ कानून के अंतर्गत झूठे अभियोगों में फंसाए गए निरपराध नागरिकों को भी इस संस्था द्वारा कानूनी सहायता दी जा रही है ।

१२. भविष्य में देश के अन्य राज्यों में कार्य बढेगा !

महाराष्ट्र में ही नहीं, अपितु पूरे देश में इस प्रकार के अभिनव उपक्रम आरंभ करनेवाली ‘दर्द से हमदर्द तक’ पहली संस्था है । संस्था के इस कार्य को महाराष्ट्र में अच्छा प्रतिसाद मिला है । अनेक अधिवक्ताओं ने मांग की है कि अन्य राज्यों में भी इस संस्था के माध्यम से काम आरंभ किए जाएं । वे उस दिशा में कदम बढा रहे हैं । आनेवाले काल में महाराष्ट्र में देश के विविध राज्यों में ‘दर्द से हमदर्द तक’ का कार्य निश्चितरूप से सफल होगा तथा अनेक सामान्य एवं अभावग्रस्त लोगों को (जरूरतमंदों को) इससे बडी सहायता होगी ।

१३. अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर का कार्य सभी अधिवक्ताओं के लिए प्रेरणादायी :

कानून की पदवी (डिग्री) प्राप्त करने के पश्चात युवा अधिवक्ताओं को अधिकाधिक पैसा कमाने में रुचि होती है । अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर एवं उनके सभी सहयोगी अधिवक्ता नि:स्वार्थ भाव से ऐसे युवा अधिवक्ताओं को समज तथा राष्ट्र संबंधी कार्य में सम्मिलित कर, उनमें समाज तथा राष्ट्र कार्य के प्रति जागरूकता निर्माण करने का महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं । यह कार्य समाज के सभी अधिवक्ताओं के लिए प्रेरणादायी है ।