Ajmer Dargah Dispute : (और इनकी सुनिये) ‘अजमेर दरगाह शिव मंदिर है इस याचिका को रद्द किया जाए !’ – अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय, केंद्र सरकार

केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की ओर से शपथपत्र प्रस्तुत

अजमेर (राजस्थान) – यहाँ स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के संदर्भ में हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा अजमेर जिला न्यायालय में प्रविष्ट की गई याचिका पर केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की ओर से शपथपत्र प्रस्तुत किया गया है । इसमें इस याचिका को रद्द करने की मांग की गई है । इस पर अब ३१ मई को सुनवाई होने वाली है । उससे पहले हिन्दू सेना को सरकार के शपथपत्र पर अपना उत्तर प्रस्तुत करना होगा । याचिका में विष्णु गुप्ता ने कहा है कि ‘अजमेर दरगाह भगवान शिव का मंदिर है’।

मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र में कहा गया है कि हिन्दू सेना ने अपनी याचिका में किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति का कोई कारण नहीं बताया है । भारतीय संघराज्य को भी पक्षकार नहीं बनाया गया है । याचिका अंग्रेजी में प्रविष्ट की गई है, लेकिन उसका हिंदी में उचित अनुवाद नहीं किया गया है । याचिका और अनुवाद में अंतर है । २७ नवंबर २०२४ को हुई सुनवाई में विपक्षी पक्षों को अपनी बात रखने का अवसर भी नहीं दिया गया था । ऐसी स्थिति में इस याचिका को रद्द करके लौटाया जाना चाहिए । (मंत्रालय द्वारा दिए गए सभी कारण हास्यास्पद प्रतीत होते हैं । मूल विषय यह है कि वहां मंदिर था या नहीं, इस पर मंत्रालय ने कुछ भी नहीं कहा । इससे यही प्रतीत होता है कि वहां मौजूद अधिकारी या तो अशिक्षित हैं या हिन्दूविरोधी हैं ! – संपादक)

हिन्दू सेना के अध्यक्ष ने क्या कहा ?

हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता

हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने कहा कि इस मामले में कानूनी राय लेने के बाद उपयुक्त उत्तर प्रस्तुत किया जाएगा । केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने तकनीकी कारणों से याचिका रद्द करने की सिफारिश की है । यदि कोई तकनीकी त्रुटियाँ होंगी, तो उन्हें सुधारा जाएगा ।

मुस्लिम पक्ष ने संतोष व्यक्त किया

केंद्र सरकार के इस निर्णय पर मुस्लिम पक्ष ने संतोष व्यक्त किया है । खादिम एसोसिएशन के अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह ने कहा कि इस मामले में हम, मुस्लिम पक्ष, पहले से ही याचिका की वैधता पर प्रश्न उठा रहे थे और इसे रद्द करने की मांग कर रहे थे । केंद्र सरकार की सिफारिश के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि यह मामला केवल लोकप्रियता पाने के उद्देश्य से प्रविष्ट किया गया था । इसका कोई आधार नहीं था । इसके माध्यम से पारस्परिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास किया गया था । मुस्लिम पक्ष ने केंद्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया है और मामले को रद्द करने की पुनः मांग की है ।

संपादकीय भूमिका

बिना कोई साक्ष्य प्रस्तुत किए और बिना कोई सुनवाई किए इस प्रकार का शपथपत्र कैसे प्रस्तुत किया जा सकता है?, ऐसा प्रश्न हिन्दुओं के मन में उठता है !