
‘वर्तमान में सर्वत्र आध्यात्मिक कष्टों की तीव्रता बहुत बढ गई है । साधकों के व्यक्तिगत और पारिवारिक अडचनों में भी वृद्धि हुई है । कुछ साधकों के मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं । व्यष्टि साधना के प्रति उदासीनता बढ रही है । एकदूसरे के विषय में पूर्वग्रह, संशय, मन की असंवेदनशीलता और नकारात्मकता बढने से साधकों को निराशा आ रही है । ‘साधना ही नहीं करनी है, व्यवहारिक विषय अर्थात शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय करेंगे’, ऐसे विचार तक आ रहे हैं । इसलिए साधना करते समय छोटी-छोटी चूकें स्वीकार नहीं पाते, चूकों का परिणाम मन पर अधिक काल तक टिका रहना और इन बातों का साधना पर परिणाम होना, ऐसी स्थिति कुछ साधकों की हो रही है । जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट नहीं है, ऐसे साधकों के मन में भी नकारात्मक विचार आ रहे हैं ।
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का काल समीप आने से उसका विरोध करने के लिए अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण बढना
‘वर्तमानकाल अत्यंत प्रतिकूल है । ऐसा होते हुए भी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का काल समीप आ गया है । इसके साथ ही मई महीने में ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव’भी हो रहा है । इस महोत्सव से सनातन राष्ट्र का (हिन्दू राष्ट्र की) स्थापना का शंखनाद भी होनेवाला है । इसलिए इस कार्य का विरोध करने के लिए वातावरण की अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म स्तर पर आक्रमण भी बढ गए हैं ।
साधकों को कष्ट देने का अनिष्ट शक्तियों का नियोजन ध्यान में रखकर सभी साधकों को अपनी साधना बढाना अत्यंत आवश्यक है । साधक नामजपादि उपाय बतानेवाले साधक अथवा संत से समय-समय पर आध्यात्मिक उपाय पूछना और करना, उत्तरदायी साधकों से मार्गदर्शन लेने के लिए अपने संदर्भ में घडा हुआ कोई प्रसंग उन्हें मनमुक्तता से बताना, भगवान से आत्मनिवेदन करना आदि प्रयत्न करने चाहिए । आजकल साधकों को होनेवाले बहुतांश कष्ट अनिष्ट शक्तियों के कष्टों के कारण हो रहे हैं, तब भी साधकों को स्वभावदोष और अहं निर्मूलन की प्रक्रिया प्रामाणिकता से करना आवश्यक है ।
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने पर सभी के कष्ट कम होंगे !
अभी का आपातकाल अत्यंत कठिन लग रहा है; परंतु यह काल संधिकाल भी है । ‘इस काल में साधना के थोडे से भी प्रयत्न किए, तब भी उसका फल अधिक मात्रा में मिलता है’, यही संधिकाल का महत्त्व है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने पर सभी के कष्ट न्यून होंगे और सभी आनंदी होंगे । उस समय सभी की आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र होगी । इसलिए साधकों निराश न हों और साधना के प्रयत्न लगन से करें !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले