सद्गुरु जग्गी वासुदेवजी के ‘ईशा फाउंडेशन’ के प्रति तमिलनाडु सरकार का हिन्दूद्वेष !

१. ‘ईशा फाउंडेशन’ का निर्माण कार्य गिराने के संदर्भ में तमिलनाडु सरकार का नोटिस

सद्गुरु जग्गी वासुदेवजी

‘तमिलनाडु के कोयंबतूर में वेल्लियांगगिरी पर्वतशृंखलाएं हैं । वहां शिवजी की पौराणिक निवासस्थली है । उसका महत्त्व भी कैलाश पर्वत की भांति ही है । वह आध्यात्मिक दृष्टि से शक्तिशाली स्थान है । इस स्थान पर योगगुरु एवं सद्गुरु जग्गी वासुदेवजी ‘ईशा फाउंडेशन’ नामक संस्था चलाते हैं । वहां योग शिक्षा, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक तथा भारतीय संस्कृति के विषय में मार्गदर्शन किया जाता है । केंद्र सरकार ने पर्यावरण कानून में कुछ सुधार किए । उसके अनुसार पर्वतीय क्षेत्र में भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन देने हेतु किए जानेवाले निर्माण कार्य को पूर्वानुमति प्रदान करने का प्रावधान हटाया । उसके उपरांत सद्गुरु जग्गी वासुदेवजी ने इन पर्वत शृंखलाओं में कुछ निर्माण कार्य किए । उसके कारण हिन्दूद्वेषी तमिलनाडु सरकार ने ‘ईशा फाउंडेशन’ द्वारा वर्ष २००६ से २०१४ की अवधि में किए गए निर्माण कार्य को अवैध प्रमाणित कर उसे ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया ।

२. मद्रास उच्च न्यायालय में प्रकरण की सुनवाई

यह प्रकरण मद्रास उच्च न्यायालय में पहुंचा । उसमें केंद्र सरकार प्रतिवादी थी । ‘पर्यावरण कानून में किए गए संशोधन के आधार पर केंद्र सरकार ने न्यायालय में अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि ईशा फाउंडेशन को इसके लिए तमिलनाडु सरकार की अथवा पर्यावरण विभाग की पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है । तमिलनाडु सरकार की अधिसूचना २००६ के अनुसार पूर्वानुमति अथवा पर्यावरणीय सहमति आवश्यक है । इस पर ‘ईशा फाउंडेशन’ का यह कहना है कि वर्ष १९९४ से उनकी संस्था वेल्लियांगिरी पहाडियों की ४८ हेक्टेयर भूमि पर कार्यरत है । वर्ष १९९४ में पर्यावरण विभाग की पूर्वानुमति लेने के संबंध में कानून अस्तित्व में नहीं था, अतः निर्माण कार्य के उपरांत बने नियम तथा कानून उन पर थोपे नहीं जा सकते ।

(पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी जी

३. उच्च न्यायालय की ओर से तमिलनाडु सरकार का नोटिस निरस्त !

इस प्रकरण में तमिलनाडु उच्च न्यायालय के द्विसदस्यीय खंडपीठ के सामने सुनवाई हुई । उस समय केंद्र सरकार के तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता आर. शंकर नारायण ने कहा, ‘‘वर्ष २०१४ में केंद्र सरकार ने पर्यावरण रक्षा के शोध नियमों में कुछ परिवर्तन किए । उसके उपरांत जो संस्थाएं पर्यावरण की हानि नहीं होने देतीं तथा पर्यावरण का संतुलन बनाए रखती हैं, उन्हें इस कानून से छूट दी जाती है । शिक्षा संस्थानों, चिकित्सालयों आदि को पर्यावरण विभाग की पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं है ।’’

‘ईशा फाउंडेशन’ योगविद्या को प्रोत्साहन देती है । यह संस्था शास्त्रीय तथा संस्कृत पाठ्यक्रम चलाती है । कुछ दिन पूर्व उन्होंने उनकी संस्था में ‘आईसीएससी’ (इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकंडरी एज्युकेशन – भारतीय माध्यमिक शिक्षा प्रमाणपत्र) पाठ्यक्रम की शिक्षा देना आरंभ किया है । ऐसा होते हुए भी तमिलनाडु सरकार के महाधिवक्ता ने प्रश्न उठाया कि ‘केंद्र सरकार इस प्रकार से छूट कैसे दे सकती है ?’ न्यायालय ने भी ‘क्या शिक्षा संस्थान कानून से ऊपर हैं ? केंद्र सरकार इस प्रकार की छूट कैसे दे सकती है ?’, यह प्रश्न उठाया । उसके उपरांत तमिलनाडु उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार द्वारा ‘ईशा फाउंडेशन’ को दिया गया नोटिस निरस्त किया ।

४. सर्वोच्च न्यायालय से पर्यावरण विभाग को फटकार

तमिलनाडु सरकार हिन्दूद्वेषी है; इसलिए उसका हिन्दू संस्कृति संजोनेवाले ‘ईशा फाउंडेशन’ के विरोध में होना स्वाभाविक है । उच्च न्यायालय द्वारा तमिलनाडु सरकार के विरुद्ध निर्णय दिए जाने के उपरांत, पर्यावरण विभाग तथा तमिलनाडु सरकार ने इस निर्णय को सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित समयसीमा में चुनौती (अपील) नहीं दी । सरकार कुछ समय बीत जाने पर जागी तथा उन्होंने विलंब से सर्वाेच्च न्यायालय में चुनौती दी ।

१४.२.२०२५ को जब यह प्रकरण सर्वाेच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए आया, तब सर्वाेच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार से ‘इस निर्णय को चुनौती देने में आपको २ वर्ष विलंब क्यों हुआ ?’, यह प्रश्न पूछकर प्रदूषण नियंत्रण विभाग को फटकार लगाई । सर्वोच्च न्यायालय में ‘ईशा फाउंडेशन’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी उपस्थित हुए । उन्होंने सर्वाेच्च न्यायालय से इस प्रकरण की सुनवाई महाशिवरात्रि के उपरांत रखने का अनुरोध किया । इसके लिए उन्होंने कारण दिया कि महाशिवरात्रि के दिन वेल्लियांगिरी, कोयंबतूर में स्थित ‘ईशा फाउंडेशन’ में बडा उत्सव होता है । यह उत्सव संपन्न होने के उपरांत उनके पक्षकार उत्तर प्रविष्ट कर सकेंगे । अतः इस प्रकरण की सुनवाई आगे होगी । इस प्रकरण में तमिलनाडु सरकार का हिन्दूद्वेष स्पष्ट रूप से दिखाई दिया ।’

श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।

– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी,  मुंबई उच्च न्यायालय (२१.२.२०२५)