नई दिल्ली – किसी व्यक्ति को ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ कहना गलत होगा; लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा २९८ (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से शब्द बोलना आदि) के अंतर्गत आरोपों से मुक्त कर दिया, जबकि यह स्पष्ट किया कि उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना अपराध नहीं माना जाएगा । न्यायालय ने कहा कि किया गया वक्तव्य निस्संदेह गलत है । परंतु इससे याचिकाकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती ।
१. झारखंड उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध प्रविष्ट याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उपर्युक्त निर्णय सुनाया । यह प्रकरण चास स्थित उपमंडल कार्यालय में उर्दू अनुवादक और कार्यकारी लिपिक (सूचना का अधिकार) द्वारा रिपोर्ट किए गए एक अपराध से संबंधित था ।
२. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि जब वह जानकारी अधिकार आवेदन के बारे में जानकारी देने के लिए आरोपी से मिलने गया, तो आरोपी ने उसके धर्म का उल्लेख करते हुए उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसे आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करने से रोकने के लिए बल का प्रयोग भी किया ।