नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय कल, १७ फरवरी को प्रार्थनास्थल कानून १९९१ (प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट १९९१) की याचिकाओं पर एकत्रित सुनवाई करेगा । मुख्य न्यायाधिपति संजीव खन्ना के नेतृत्व में तीन न्यायाधीशों का खंडपीठ इस प्रकरण की सुनवाई करेगा ।
Supreme court to Hear Pleas Concerning Places of Worship Act, 1991
Since the law was enacted by Parliament, the power to amend or repeal it also lies with Parliament.
Therefore, instead of taking up the court’s time deciding on the constitutionality of the law, the Parliament… pic.twitter.com/cej6jxNkNS
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) February 15, 2025
१. वर्ष १९९१ का यह कानून १५ अगस्त ,१९४७ काे रहनेवाले प्रार्थनास्थलों के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन करने को मना करता है ।
२. अनेक याचिकाओं द्वारा इस कानून की वैधता को चुनौती दी गई है ।
३. कुछ समाजकंटक कथित धार्मिक मित्रता रखने हेतु कानून की कडी कार्यवाही की मांग करते आए हैं ।
४. १२ दिसंबर को सर्वाेच्च न्यायालय ने वाराणसी की ज्ञानवापी तथा मथुरा की शाही ईदगाह के साथ मस्जिदों का सर्वेक्षण करने हेतु हिन्दुत्वनिष्ठ गुटों द्वारा प्रविष्ट (दाखिल) किए लगभग १८ अभियोगों पर कार्यवाही रोकी थी ।
५. दूसरी ओर एम्.आइ.एम्. के प्रमुख सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने २ जनवरी को प्रविष्ट याचिका में प्रार्थनास्थल कानून की प्रभावी कार्यवाही करने की मांग की ।
संपादकीय भूमिकासंसद ने कानून बनाया है, इसलिए कानून में परिवर्तन करने अथवा उसे निरस्त करने का अधिकार संसद को है । अत: कानून की घटनात्मकता पर निर्णय करने में न्यायालय का समय लेने की अपेक्षा वास्तव में संसद को ही उसे एकमत से निरस्त करना चाहिए, यही हिन्दू समाज की भावना है ! |