Sambhal Masjid Was Harihar Mandir : १५० वर्ष पूर्व अंग्रेजों द्वारा किए गए सर्वेक्षण में वर्तमान में जो शाही जामा मस्जिद है, उसके मंदिर होने के मिले थे प्रमाण !

संभल (उत्तरप्रदेश) के श्री हरिहर मंदिर का प्रकरण

संभल (उत्तरप्रदेश) – वर्तमान की शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण से संबंधित और एक नई जानकारी सामने आई है । प्रशासन का यह दावा है कि वर्ष १८७४ के १५० वर्ष पुराने सर्वेक्षण के ब्योरे में कहा गया है कि वर्तमान की जामा मस्जिद के मंदिर होने के प्रमाण मिले थे । यह ब्योरा ब्रिटिश अभियंता तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जनक मेजर जनरल ए. कनिंघम की देखरेख में तैयार किया गया था । वर्ष १८७४-७५ में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के अंतर्गत ब्रिटिश पुरातत्त्वविद कार्लेल ने यह ब्योरा तैयार किया था । वर्तमान में इस मस्जिद के संदर्भ में न्यायालय में अभियोग चल रहा है । न्यायालय के आदेश पर इसका सर्वेक्षण भी किया गया है, जिसके सार्वजनिक होने की प्रतीक्षा है ।

१. इस ब्योरे में ऐसा कहा गया है कि इस इमारत का सुंदर गुंबज कदाचित इस प्रकार के गुंबजो में अद्वितीय है । उसका आकार एक महाकाय अंगूठे की अंदर की रिक्ति जैसा है । इस इमारत का मस्जिद में रूपांतरण करने के लिए छोटी इटों से निर्माणकार्य किया गया है, ऐसा दिखाई देता है । जहां जहां दीवारें प्लास्टररहित थीं, वहां वहां मुझे (कनिंघम को) यह दिखाई दिया कि ये इटें छोटी थीं तथा उन्हें मिट्टी के तलछट में लगाया गया था ।

२. पुरानी हिन्दू पद्धति से किए गए निर्माणकार्य में तथा आधुनिक इस्लामी पद्धति से किए गए निर्माणकार्य में स्पष्टरूप से अंतर दिखाई देता है । पुराना मंदिर इस्लामी निर्माणकार्य से भिन्न दिखाई देता है । चतुष्कोनीय हिन्दू मंदिर की पूर्वी दीवार पर ८ फीट चौडाईवाला केवल एक ही द्वार था; परंतु मुसलमानों ने यहां और ४ द्वार बनाए । प्रत्येक द्वार ६ फीट चौडा है, चतुष्कोनीय मंदिर की उत्तरी दीवार में २ तथा दक्षिणी दीवार में २ द्वारा बनाए गए हैं ।

३. ब्योरे में कहा गया है कि गुंबज का आकार अंडाकार है अथवा उसके अक्ष के इर्दगिर्द घुमनेवाले आधे लंबवृत्ताकार जैसा है । यह गुंबज ईटों से बनाया गया है तथा पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में उसका पुनर्निर्माण किया गया था, ऐसा कहा जाता है । (वर्तमान में जैसा है) वृत्ताकार गुंबज अष्टकोन पर खडा है । मध्यवर्ती चौक पर स्थित हिन्दू मंदिर की दीवारें बडे ईंटों से बनाई गईं तथा पत्थरों से लेपित की हुई दिखाई देती हैं; परंतु दीवारों पर लगाया गया प्लास्टर उसे बनाई गई सामग्री को छिपाता है । मेरा यह विश्वास है कि मुसलमानों ने जिन स्थानों पर हिन्दू धार्मिक चिन्ह थे; उन्हें छिपाने के लिए प्लास्टर लगाया है ।