चार युगों में धर्म की विशेषताएं

१. कृतयुग में धर्म चतुष्पाद था तथा नारायण शुक्ल वर्ण था ।

२. त्रेतायुग में यज्ञ, दान एवं विभिन्न धर्म-कर्म करने में लोग तत्पर थे । धर्म त्रिपाद होता है । श्री विष्णु रक्तवर्ण थे ।

३. द्वापरयुग में धर्म द्विपाद होता है । उसके कारण लोग सत्यभ्रष्ट हो जाते हैं । उसके कारण बीमारियां बहुत बढती हैं । लोग काम्यकर्म करते हैं । द्वापरयुग में श्रीविष्णु पीले होते हैं ।

४. कलियुग में धर्म एक ही पैर पर (दान) खडा होता है । इस तामसिक युग में श्रीविष्णु काले होते हैं । इस युग में वेदाचार, धर्म एवं यज्ञकर्म का पतन होता है, साथ ही बीमारी, काम, क्रोध, लोभ, जलन आदि दोषों की अभिवृद्धि होती है ।’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

(साभार : साप्ताहिक ‘घनगर्जित’, फरवरी २०२४)