अखाडे महाकुम्भ पर्व के मुख्य आकर्षण हैं । आज हम इनमें से आवाहन अखाडे के विषय में जानकारी लेते हैं । अखाडों में हमें कुश्ती का अखाडा ज्ञात है; परंतु साधुओं के ये अखाडे तो हिन्दू धर्म की अर्थात सनातन धर्म की रक्षा करनेवाले लडाकू साधुओं की एक सेना ही होती है ।
१. अखाडों की निर्मिति
हिन्दू धर्म जब तत्कालीन विभिन्न विचारधाराओं के अथवा तत्त्वज्ञान के प्रभाव से ढंका जा रहा था, साथ ही उसके अनुयायियों का दिशाभ्रम हो रहा था, उस समय भविष्य में हिन्दू धर्म पर बढनेवाले संकटों का विचार कर आद्य शंकराचार्यजी ने भारत के चारों दिशाओं में ४ पीठों की स्थापना की । इन पीठों के अंतर्गत जो साधु एकत्रित होंगे, उन्हें शास्त्रोंसहित शस्त्र चलाने का भी ज्ञान होना चाहिए, इस संकल्पना से अखाडों की निर्मिति हुई । पहले ४ प्रमुख अखाडे थे; परंतु उनकी उपासना-पद्धतियों एवं नियमों के कारण विवाद की घटनाएं हुईं । उसके कारण इन ४ अखाडों की संख्या बढती गई, जो आज १३ अखाडे हैं । इनमें ७ अखाडे शैव पंथीय हैं, ३ वैष्णव पंथीय हैं तथा शेष ३ अखाडे उदासीन संप्रदाय के हैं; परंतु कुछ अखाडों की निर्मिति ८ वीं शताब्दी से पूर्व ही हुई, केवल कुछ काल उपरांत उनका नामाभिधान हुआ, ऐसा अखाडों का मानना है ।
इस संप्रदाय के आवाहन अखाडे को ‘आद्य अखाडा’ कहते हैं । आवाहन अखाडे को महाकुंभ का राजा कहा जाता है । यह बहुत पुराना अखाडा है । प्रत्येक अखाडे का एक ध्वज होता है । इस ध्वज का
अर्थ ऐसा है कि ‘यह अखाडा निरंतर गतिशील है ।’ ‘आवाहन अखाडे की स्थापना ६ वीं शताब्दी में हुई । वर्तमान में उसमें ५२ सहस्र साधु हैं’, ऐसा अखाडा प्रमुखों का कहना है ।
२. अखाडों के धर्मध्वज के पूजन से कुम्भ पर्व का आरंभ !
प्रत्येक अखाडे का धर्मध्वज होता है, उसमें ५२ बंध अनिवार्य होते हैं । आद्य शंकराचार्यजी का पहला अखाडा आवाहन अखाडा ही है । अखाडों के धर्मध्वज के पूजन से कुम्भ पर्व का आरंभ होता है । अखाडे के साधु अखाडे के क्षेत्र में गाजेबाजे के साथ शोभायात्रा से पैदल चलते हुए, हाथी तथा घोडों पर बैठकर प्रवेश करते हैं, उसे ‘पेशवाई’ शोभायात्रा कहते हैं । यह पेशवाई शोभायात्रा कुम्भ पर्व का आकर्षण होती है । इस समय अखाडे के साधु अखाडे में परंपरा से होनेवाले हथियारों का प्रदर्शन करते हैं । नागा साधु शंकराचार्यजी का लडाकू दल होने से उनके पास तलवार, भाला, दंडपट्टा जैसे पारंपरिक हथियार होते हैं ।
३. अखाडे की प्रज्वलित धुनी !
आवाहन अखाडा में एक निरंतर प्रज्वलित धुनी है । यह धुनी १ सहस्र ५०० वर्षाें से प्रज्वलित है । इस धुनी की पूजा की जाती है । इस धुनी को ‘सनातन परंपरा की चेतना’ कहते हैं; इसलिए इस धुनी को बुझने नहीं दिया जाता । अखाडों में पूर्वापार से अग्निमंत्र का उच्चारण कर अग्नि प्रज्वलित किया जाता है । वर्तमान में अरणी मंत्र से अग्नि प्रज्वलित की जाती है ।
४. भस्म ही साधुओं का वस्त्र
प्रयागराज में कुम्भ पर्व के समय में बहुत ठंड होते हैं । सर्वसामान्य लोग इस ठंड से बचने के लिए कपडे, स्वेटर इत्यादि पहनते हैं; परंतु नागा साधु वस्त्र नहीं पहनते । भस्म ही उनका वस्त्र होता है । इस आवाहन अखाडे में अनेक सिद्ध एवं योगी हैं । उनमें से कुछ साधुओं की वेशभूषा एवं उपासना पद्धति भी विशेषतापूर्ण
है । एक साधु ने तो अपने मस्तक पर २.२५ लाख रुद्राक्ष धारण किए हैं । उन रुद्राक्षों का कुल वजन ४५ किलो है । यह साधु ४५ किलो का रुद्राक्ष धारण कर कुछ घंटे खडे रहकर उपासना करते हैं ।
५. मुगल काल में तथा स्वतंत्रता संग्राम में अखाडों का योगदान
कुम्भ पर्व की अवधि में अखाडों में दिखाई देनेवाले साधु अन्य समय पर घने अरण्य में तपस्या एवं साधना करते हैं, साथ ही सर्वसामान्य बस्ती से तथा मानवीय संपर्क से दूर रहना पसंद करते हैं । उसके कारण ये साधु अन्य समय पर कहीं दिखाई नहीं देते । इस अखाडे ने अपने हथियार संजोकर रखे हैं । लेख में बताए अनुसार देश एवं सनातन धर्म की रक्षा इन अखाडों का मुख्य कार्य है । आवाहन अखाडे ने वर्ष १८५७ के अंग्रेजों के विरुद्ध के विद्रोह के समय रानी लक्ष्मीबाई के पक्ष में अंग्रेजों से युद्ध किया । उस समय इस अखाडे के ४० सहस्र साधु वीरगति को प्राप्त हुए थे । इसी अखाडे ने महारानी लक्ष्मीबाई का राजतिलक किया था । अखाडों को इस प्रकार धर्मरक्षा का कार्य करना पडता है । उसके कारण उनका प्रशिक्षण कठिन होता है । मुगल साम्राज्य में उन्होंने मुगलों के विरुद्ध युद्ध किया, उस समय भी अनेक साधुओं ने बलिदान दिया है । ‘धर्मरक्षा हेतु बलिदान देना समाज के लिए सर्वाेच्च त्याग है’, ऐसा आवाहन अखाडे के साधु मानते हैं ।
हिन्दू धर्म के लिए सैकडों वर्षाें से कार्यरत इन अखाडों के प्रति कोटि-कोटि कृतज्ञता !
श्री गुरुचरणार्पणमस्तु ।
– श्री. यज्ञेश सावंत, कुम्भनगरी प्रयागराज, उत्तर प्रदेश. (५.१.२०२५)