प्रयागराज महाकुंभपर्व २०२५
१४ जनवरी को होग प्रथम अमृत स्नान !
श्री. प्रीतम नाचणकर, श्री. यज्ञेश सावंत एवं श्री. नीलेश कुलकर्णी

प्रयागराज, १३ जनवरी (संवाददाता) : यहां के त्रिवेणी संगम पर देश-विदेश से आए लगभग ८० लाख भाविकों ने १३ जनवरी को अपार उत्साह के साथ प्रथम पर्व स्नान किया । प्रातः ४ बजे से ही पर्व स्नान का आरंभ हुआ । कडाके की ठंड में भी संगम की ओर जानेवाली सभी सडकों पर श्रद्धालुओं की भीड उमड गई थी । श्रद्धालु लगभग ६-७ कि.मी. की दूरी पार कर संगम पहुंचे । छोटे बच्चों से लेकर वयोवृद्ध स्तर के सभी श्रद्धालुओं ने इस स्नान का लाभ उठाया, विशेषकर कल्पवास (एक प्रकार का व्रत) रखनेवाले श्रद्धालुओं ने इस स्नान में बडे स्तर पर भाग लिया । ‘जय सियाराम’के नामघोष में इन सभी ने त्रिवेणी संगम पर स्नान किया तथा उसके उपरांत गंगापूजन एवं आरती उतारकर प्रथा के अनुसार नदी में दीप छोडे । विदेशी नागरिकों का लक्षणीय सहभाग, इस पर्व स्नान की विशेषता थी । १४ जनवरी अर्थात मकर संक्रांति के दिन इसी स्नान पर प्रथम अमृत स्नान होगा । प्रशासन ने यह अनुमान व्यक्त किया है कि इस स्नान के लिए लगभग ३ करोड श्रद्धालु आएंगे । इसमें प्रमुखता से सभी अखाडों के साधु-संतों का समावेश है । आज के स्नान के लिए जलसंपदा विभाग ने गंगा नदी में अतिरिक्त पानी छोडा था, उसके कारण गंगा नदी के प्रवाह की गति सामान्य की अपेक्षा अधिक थी । मुख्य बात यह कि गंगा नदी का पानी अत्यंत स्वच्छ होने से श्रद्धालु इस स्नान का आनंद अनुभव कर पाए । १३ जनवरी से २६ फरवरी की अवधि में महाकुंभपर्व चलेगा ।

क्षणिकाएं
१. प्रशासन ने सुव्यवस्था हेतु स्वयंसेवकों की सहायता ली ।
२. अनेक साधु-संत एवं श्रद्धालु संगमतट पर स्नान करने के उपरांत जप, तप, भजन, कीर्तन, ग्रंथवाचन आदि में रत थे ।
३. स्नान कर वापस जाते समय अनेक श्रद्धालु अपने साथ पवित्र गंगाजल ले जा रहे थे ।
प्राथमिक परीक्षा में पुलिस-प्रशासन किसी प्रकार से उत्तीर्ण; परंतु व्यवस्था में सुधार का अवसर ! :अमृत स्नान की तुलना में पर्व स्नान के समय श्रद्धालुओं की भीड आधी होती है । उसके कारण आज का पर्वअ स्नान पुलिस एवं प्रशासन के लिए पूर्व परीक्षा ही थी । निम्न सूत्रों में बताई गई व्यवस्था को देखा जाए, तो इस पूर्व परीक्षा में पुलिस एवं प्रशासन किसी प्रकार से उत्तीर्ण हुए, ऐसा कहा जा सकता है तथा १४ जनवरी को होनेवाले प्रथम अमृत स्नान के दिन उन्हें इस व्यवस्था में सुधार करने के लिए अवसर है, ऐसा श्रद्धालुओं का कहना है । १. पांटून सेतू पर अव्यवस्था ! : पांटुन सेतू के (नदी पर आने-जाने हेतु निर्मित तात्कालिक सेतू) मुख पर श्रद्धालुओं की प्रचंड भीड उमडने से ५० मीटर की दूरी पर कुछ समय के लिए भगदड स्थिति बनी । नियमित मार्गाें पर श्रद्धालुओं की पैदल चलने की गति पांटुन सेतू पर धीमी पड जाने से सेतू के मुख पर अधिक भीड उमडी । वहां पुलिसकर्मी खडे थे, तब भी वे इस स्थिति को नियंत्रण में नहीं ला सके । २. दिशादर्शक फलकों का अभाव ! : संगम के स्थान पर जाने हेतु विभिन्न स्थानों पर दिशादर्शक फलक न होने के कारण श्रद्धालु असमंजस में पड रहे थे । उन्हें बार-बार पूछना पड रहा था । सरकार ने भले ही संगम पर श्रद्धालुओं के प्रवेश तथा वापसी का मार्ग सुनिश्चित किया हो, तब भी विभिन्न स्थानों पर श्रद्धालुओं को सहजता से दिख सके, ऐसे फलक लगाए जाना अपेक्षित था, जिससे श्रद्धालुओं में भ्रम उत्पन्न न हो; परंतु ऐसी कोई भी व्यवस्था दिखाई नहीं दी । उसके कारण वहां आनेवाले तथा जानेवाले सभी श्रद्धालु एक ही मार्ग पर इकट्ठा हो रहे थे तथा उसके कारण अनावश्यक भीड उमड रही थी । ३. भीड में खोए हुए लोगों के लिए की गई व्यवस्था में अक्षम्य ढिलाई ! : संगम पर भीड में खो जानेवाले श्रद्धालुओं की सहायता करने हेतु पुलिस प्रशासन ने बडे गाजेबाजे के साथ व्यवस्था बनाई; परंतु वास्तव में इस व्यवस्था में अक्षम्य ढिलाई दिखाई दी । संगम पर ऐसे लोगों के लिए केवल एक ही कक्ष बनाया गया था । उस कक्ष पर फलक भी नहीं लगाया गया था । वहां खोए हुए संबंधियों के नाम से उद्घोषणा कर वे ‘पूल क्र. १ के पास आएं’, ऐसा आवाहन किया जा रहा था, तथापि किसी को भी यह पूल कहां है ?’, यह ज्ञात नहीं था । उसके कारण और असमंजस की स्थिति बन गई । वहां उपस्थित संबंधी रोने की स्थिति में दिखाई दिए । वहां के पुलिसकर्मियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सवेरे ४ से १० बजे की अवधि में उन्हें श्रद्धालुओं के खो जाने के संबंध में लगभग ३ सहस्र शिकायतें मिली थीं । इस कक्ष के विषय में सरकार ने आवश्यक गंभीरता जनजागरण नहीं किया है, ऐसा दिखाई दिया । ४. महिलाओं को असुविधा : स्नान के उपरांत घाट पर महिलाओं को कपडे बदलने के लिए प्रशासन की ओर से अनेक कक्ष लगाए गए थे; परंतु ये कक्ष घाट से कुछ दूरी पर होने से प्रचंड भीड में सभी महिलाओं को वहां तक पहुंचना संभव नहीं हो पा रहा था । उसके कारण महिलाओं की सुविधा की दृष्टि से इन कक्षों को घाट के निकट होना अपेक्षित था । ५. भिखारियों से कष्ट ! : संगम पर स्नान कर वापस आने के उपरांत दान देने की परंपरा है । उसके कारण संगम पर बडी संख्या में भिखारियों की भीड थी । ये भिखारी स्नान संपन्न कर वापस आए श्रद्धालुओं के पीछे पड रहे थे । उसके कारण श्रद्धालुओं को कष्ट हो रहा था । |