Justice Shekhar Yadav On UCC : भारत बहुसंख्यककों की इच्छा के अनुसार काम करेगा !

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शेखर यादव का समान नागरिक संहिता के कानून के संदर्भ में वक्तव्य

न्यायाधीश शेखर कुमार यादव

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – यह हिन्दुस्थान है तथा यह देश यहां रहनेवाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा, यह बताने में मुझे कोई संकोच नहीं है । यह कानून है । मैं यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नहीं बोल रहा हूं, अपितु कानून ही बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करता है । इसे यदि आप परिवार अथवा समाज के संदर्भ में देखेंगे, तो जिससे बहुसंख्यकों का कल्याण एवं आनंद सुनिश्चित किया जाता है, वही स्वीकार किया जाता है; ऐसा बोलते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने ‘हिन्दुओं के हित के अनुसार देश चलेगा’, ऐसा कहा ।

वे विश्व हिन्दू परिषद के कानूनी कक्ष की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लाइब्रेरी हॉल में अधिवक्ताओं तथा विहिप के कार्यकर्ताओं के लिए समान नागरिक संहिता के संदर्भ में आयोजित कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रहे थे । न्यायाधीश दिनेश पाठक ने इस कार्यंक्रम का उद्घाटन किया ।

न्यायाधीश शेखर कुमार यादव द्वारा रखे गए सूत्र

१. बहुत शीघ्र ही समान नागरिकता कानून बनेगा !

मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि आपको समान नागरिकता संहिता कानून बहुत शीघ्र पारित हुआ दिखाई देगा । वह दिन अब दूर नहीं, जब यह स्पष्ट होगा कि यदि एक देश होगा, तो कानून भी एक ही होगा । जो धोखाधडी करने का प्रयास करते हैं, वो लंबे समय तक टिक नहीं पाएंगे ।

२. एक पुरुष को ४ पत्नियों जैसे अधिकार नहीं चलेंगे !

यदि आप कहेंगे कि हमारा ‘पर्सनल लॉ इसकी अनुमति नहीं देता’, तो वह स्वीकार्य नहीं होगा । महिला को भरणपोषण भत्ता मिलेगा । पत्नी को एक से अधिक पुरुषों से विवाह की अनुमति; परंतु पुरुष को ४ पत्नियां, ऐसा नहीं चलेगा । यह भेदभाव उत्पन्न करानेवाला है तथा संविधानविरोधी है ।

३. महिलाओं का अनादर नहीं किया जा सकेगा !

महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए । हिन्दू धर्मग्रंथों तथा वेदों में देवी मानी गईं महिलाओं का आप अपमान नहीं कर सकते । आप ४ पत्नियां रखने का, ‘हलाला’ (पहली पत्नी को तलाक देने पर पुनः उसके साथ ही विवाह करना हो, तो उस महिला को अन्य किसी से विवाह कर उसके साथ शारीरिक संबंध रखकर उसके उपरांत उसके द्वारा तलाक दिए जाने पर पुनः पहले पति से विवाह करने की प्रथा) करने का अथवा तीन तलाक देने का अधिकार नहीं जता सकते । महिलाओं की देखभाल करने का सूत्र अस्वीकार नहीं करना चाहिए तथा अन्य अन्यायकारी काम नहीं करने चाहिए ।

४. शाहबानो प्रकरण में कानून बदलनेवाली तत्कालिन केंद्र सरकार !

सर्वोच्च न्यायालय ने भी पीडित शाहबानो को भरणपोषण भत्ता देने का आदेश दिया था; परंतु उस समय तत्कालिन केंद्र सरकार कुछ लोगों के सामने झुक गई थी । देखभाल के अधिकार के लिए तत्कालिन केंद्र सरकार को सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के विरोध में दूसरा कानून बनाने के लिए बाध्य बनाया गया ।

५. प्रत्येक धर्म को उनमें समाहित अनिष्ट प्रथाएं दूर करनी चाहिएं !

केवल रा.स्व. संघ, विहिप अथवा हिन्दू समाज ही ‘समान नागरिक संहिता कानून’ की वकालत नहीं करते, अपितु देश के सर्वोच्च न्यायालया ने भी इसका समर्थन किया है । हिन्दू समाज सती प्रथा, बालविवाह जैसी अनेक प्रथाओं से मुक्त हुआ है । अपनी चूकें स्वीकार कर उन्हें समय पर ही सुधार करने में कुछ भी अनुचित नहीं है । मैं जो बोल रहा हूं, वह किसी एक विशिष्ट धर्म के लिए नहीं है, जबकि वह हम सभी पर लागू है । प्रत्येक धर्म को उसमें समाहित अनिष्ट प्रथाओं से दूर रहना चाहिए । यदि उन्होंने वैसे नहीं किया, तो देश अपने सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता कानून लाएगा ।

६. हिन्दू सहिष्णु, जबकि अन्य असहिष्णु !

हमारे देश में बचपन से ही समस्त सजीवों का, साथ ही छोटे पशुओं का भी सम्मान रखने तथा उन्हें किसी प्रकार की चोट न पहुंचाने की शिक्षा दी जाती है । यह सीखना हमारे व्यक्तित्व का एक अंग बन जाता है; इसीलिए कदाचित हम अन्यों के दुख में दुख का अनुभव करते हैं तथा हम अधिक सहनशील एवं दयालु बन जाते हैं; परंतु प्रत्येक व्यक्ति के संदर्भ में ऐसा नहीं होता । हमारी संस्कृति में बच्चों को ईश्वर के मार्गदर्शन में पोषित किया जाता है । उन्हें वेदमंत्र सिखाए जाते हैं तथा अहिंसा के संस्कार दिए जाते हैं । तथापि अन्य कुछ संस्कृतियों में बच्चे पशुहत्या देखते हुए बडे हो जाता हैं, जिसके कारण उनमें सहिष्णुता एवं करुणा विकसित होने की अपेक्षा करना कठिन होता है ।

७. जो भारत को माता मानता है तथा उसकी रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार रहता है, वह हिन्दू है !

हिन्दू होना केवल गंगास्नान करनेवालों तक सीमित नहीं है अथवा माथे पर चंदन लगाया; इसलिए कोई हिन्दू हुआ, ऐसा भी नहीं है । जो इस भूमि को अपनी माता मानता है तथा संकट के समय में राष्ट्र के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार होता है, चाहे वह कुरआन अथवा बाइबल पर विश्वास करता हो, वह भी हिन्दू है । स्वामी विवेकानंद को यह विश्वास था कि केवल हिन्दू धर्मी ही ऐसा बोल सकते हैं ।

८. मुसलमान हिन्दुओं की संस्कृति का अनादर न करें !

विवाह करते समय आप (मुसलमान) अग्नि के इर्द-गिर्द सात फेरे लगाएं, ऐसी हमारी इच्छा नहीं है । आप गंगा में डूबकी लगाएं, यह भी हमारी इच्छा नहीं है; परंतु आप देश की संस्कृति का, देवताओं का तथा महान नेताओं का अनादर न करें, यह हमारी अपेक्षा है ।

९. हिन्दू स्वयं को कायर न समझें !

हिन्दू भले ही अहिंसक एवं दयालु हों, परंतु तब भी ‘हम कायर हैं’, ऐसा उन्हें समझना नहीं चाहिए । हमें अपने बच्चों को देश, हमारी धार्मिक प्रथाएं तथा हमारे महान व्यक्तित्वों की जानकारी देनी चाहिए । उन्हें यह सिखाना चाहिए ।

१०. ..तो भारत का बांग्लादेश अथवा तालिबान बनने में समय नहीं लगेगा !

‘एक हैं तो सैफ हैं’ (हम यदि संगठित हों, तभी हम सुरक्षित रहेंगे) इस मूल्य को हमने आत्मसात किया, तो कोई भी हमें हानि नहीं पहुंचा सकेगा । यदि इस भावना को दबाया गया, तो भारत का बांग्लादेश अथवा तालिबान बनने में समय नहीं लगेगा । स्वयं को शक्तिशाली बनाने हेतु लोगों में यह संदेश फैलाने की आवश्यकता है ।

(और इनकी सुनिए …) ‘हिन्दू संगठन के कार्यक्रम में विद्यमान न्यायाधीश का भाग लेना लज्जाप्रद !’ – अधिवक्त्री इंदिरा जय सिंह की आलोचना

वरिष्ठ अधिवक्त्री इंदिरा जय सिंह ने न्यायाधीश शेखर यादव की आलोचना करते हुए एक्स पर एक पोस्ट की । उसमें उन्होंने कहा कि एक हिन्दू संगठन द्वारा स्वयं की राजनीतिक नीति को लेकर आयोजित किए गए कार्यक्रम में एक विद्यमान न्यायाधीश का सक्रियता से भाग लेना लज्जाप्रद है । (इसमें संबंधित न्यायाधीश ने कानून की कार्यकक्षा में रहकर ही सत्य सूत्रों को स्पष्टता से रखा है; उसके कारण कुछ लोगों को उदरशूल होना स्वाभाविक ही है; परंतु अब ऐसे लोगों के दिन लद गए हैं, इस बात को उन्हें ध्यान में रखना पडेगा ! – संपादक)

न्यायाधीश यादव ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव दिया था !

न्यायाधीश यादव ने वर्ष २०२१ में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के संबंध में वक्तव्य दिया था । उन्होंने कहा था, ‘गाय एकमात्र ऐसा पशु है, जो सांस के द्वारा ऑक्सिजन लेता है तथा उसे बाहर निकालता है । हिन्दुओं के मूलभूत अधिकारों में गोरक्षा का समावेश किया जाना चाहिए ।’ गोहत्या के आरोपित एक मुसलमान आरोपी को जमानत देना अस्वीकार करते हुए उन्होंने यह वक्तव्य दिया था ।

वर्ष २०२१ में ही अन्य एक आदेश में न्यायाधीश यादव ने संसद में कानून के माध्यम से हिन्दुओं के पौराणिक ग्रंथों को राष्ट्रीय सम्मान देने का सुझाव दिया था ।

संपादकीय भूमिका 

भारत के इतिहास में पहली बार किसी विद्यमान न्यायाधीश ने इस प्रकार का वक्तव्य दिया है । इससे यह ध्यान में लेना होगा कि अब समय बदल रहा है । इससे पूर्व भी कानून की कार्यकक्षा में ऐसा वक्तव्य दिया जा सकता था; परंतु हिन्दुओं के मन में भय उत्पन्न किए जाने के कारण कोई बोलने का साहस नहीं दिखाता थे, जो अब दिखा रहे हैं !