स्वेच्छा के २ प्रकार

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘साधना करनेवाले ‘आगामी जन्म न मिले ; साधना कर इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त हो जाए’, ऐसी इच्छा रखते हैं । इसके विपरीत राष्ट्रप्रेमी एवं धर्मप्रेमी लोगों को लगता है, ‘धर्मकार्य करने हेतु पुनः-पुनः जन्म मिले ।’ यदि इसे स्वेच्छा कहेंगे, तो ‘अगला जन्म न मिले’, यह भी तो स्वेच्छा ही है !’

✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ‘सनातन प्रभातʼ नियतकालिक